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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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छठी शताब्दी ईसा पूर्व में ऋणादान

Author(s) Anil Kumar Srivastava
Country India
Abstract भारत में ऋण के लेन-देन की प्रथा कब प्रारम्भ हुई, इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ भी कहना कठिन है परन्तु हड़प्पा काल में इसके प्रचलित होने की प्रबल सम्भावना प्रतीत होती है। हड़प्पा सभ्यता सहित कांस्ययुगीन विश्व की किसी भी सभ्यता में सिक्कों का प्रचलन नहीं था। अतः व्यापारियों, कृषकों, शिल्पियों आदि को विभिन्न प्रयोजनों के लिये वस्तुओं का विनिमय एवं ब्याज पर लेन-देन करना पड़ता होगा। प्राचीन भारत में अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं से पीड़ित व्यक्तियों को विवश होकर सम्पन्न लोगों से आर्थिक सहायता लेनी पड़ती थी। प्रारम्भ में यह सहायता लाभ निरपेक्ष थी परन्तु क्रमशः धन संग्रह की प्रवृत्ति में विस्तार के परिणामस्वरूप धनवान लोग मूलधन पर लाभ की कामना करने लगे। यह लाभ की अवधारणा ही ऋणदाताओं के लिये प्रमुख प्रेरक शक्ति सिद्ध हुई जिसके परिणामस्वरूप सम्पन्न किसान, शिल्पी, व्यापारी एवं श्रेष्ठि अपनी अतिरिक्त पंूजी का सदुपयोग ब्याज पर ऋण देकर करने लगे। प्रस्तुत शोधपत्र का प्रमुख उद्देश्य छठी शताब्दी ईसा पूर्व में ब्याज पर ऋण के लेन-देन का अध्ययन करना है।
Keywords ऋण, ब्याज, कुटुम्बिक, धन, गृहपति
Field Sociology > Archaeology / History
Published In Volume 5, Issue 6, November-December 2023
Published On 2023-12-30
Cite This छठी शताब्दी ईसा पूर्व में ऋणादान - Anil Kumar Srivastava - IJFMR Volume 5, Issue 6, November-December 2023. DOI 10.36948/ijfmr.2023.v05i06.11377
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i06.11377
Short DOI https://doi.org/gtbtdt

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