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E-ISSN: 2582-2160
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Volume 6 Issue 6
November-December 2024
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भारतीय साधुओं के बदलते सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिमानों का समाजशास्त्रीय अध्ययन
Author(s) | Dewansh Verma |
---|---|
Country | India |
Abstract | भारतीय संस्कृति की प्रकृति संश्लेषणात्मक है अर्थात् इसमें समायोजन और सहनशीलता जैसे विशिष्ट गुण पाए जाते हैं। भारत में बहुसंख्यकों द्वारा अपनाया गया हिन्दू धर्म अत्यन्त लचीला है। यह समरूप धर्म न होकर बहुदेववादी है जो दो रूपों में विद्यमान है। पहला सुसंस्कृत रूप में तथा दूसरा लोकप्रिय रूप में। धर्म का सुसंस्कृत रूप धार्मिक ग्रन्थों में मिलता है, जबकि लोकप्रिय रूप वह है जो बहुसंख्यक जनता के वास्तविक जीवन में देखने को मिलता है। रोबर्ट रेडफील्ड (Robert Redfield) ने इन दोनों रूपों को क्रमश: बृहत् परम्परा और लघु परम्परा कहा है। एक ओर हमारे बीच 'रामायण' और ‘महाभारत' की बृहत् परम्परा मौजदू है तो दूसरी ओर ग्रामीण देवता की पूजा की लघु परम्परा भी। हिन्दू धर्म एक उदारचेता, गहनशील एवं आत्मसात् करने वाला धर्म है। यह अपनी उदारता और समायोजन के गुण के लिए प्रसिद्ध है। हिन्दू धर्म न तो अन्य धर्मों का विरोध करता है और न ही उनके अनुयाययियों को धर्म परिवर्तन करने के लिए प्रेरित करता है। इसी गुण के कारण भारत में अनेक मतों का सह-अस्तित्व सम्भव हो सका है। विभिन्न धर्मों तथा मतों के मानने वालों के सह-अस्तित्व की क्रियाविधि यहाँ वर्षों से विद्यमान है। यह लेख 21वीं सदी में हिंदू धर्म के वैचारिक मापदंडों एवं धर्म और त्याग (संन्यास) की पुनर्कल्पना के लिए दैनिक धार्मिक संदर्भ के रूप में त्यागियों (साधुओं) की बदलते संदर्भ की पड़ताल करता है। |
Field | Sociology |
Published In | Volume 6, Issue 2, March-April 2024 |
Published On | 2024-04-07 |
Cite This | भारतीय साधुओं के बदलते सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिमानों का समाजशास्त्रीय अध्ययन - Dewansh Verma - IJFMR Volume 6, Issue 2, March-April 2024. DOI 10.36948/ijfmr.2024.v06i02.15385 |
DOI | https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i02.15385 |
Short DOI | https://doi.org/gtqx3k |
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E-ISSN 2582-2160
doi
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IJFMR DOI prefix is
10.36948/ijfmr
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