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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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जिद्दू कृष्णमूर्ति के दार्शनिक एवं शैक्षिक विचारों की वर्तमान में उपादेयता

Author(s) Niraj Verma, Dr. Akhilesh
Country India
Abstract भारतीय वसुंधरा धर्म, शिक्षा, न्याय, सभ्यता, विज्ञान, कला आदि मानव जीवन की आवश्यक प्रवृत्तियों की जन्मभूमि है। पशु को मनुष्य बनाने की सभ्यता व संस्कृति का उद्भव यही हुआ। भारतीय सभ्यता मानवता की, समस्त मनुष्य जाति की अत्यन्त ही विवेक एवं दूरदर्शिता से भरी हुई जीवन पद्धति है। इसे अपनाकर मनुष्य अगणित विकृतियों और बुराइयों से बचकर सुख, समृद्धि, सफलता और सद्गति का अधिकारी बनता है। इसमें अन्धविश्वास या मूढ़ परम्परा के लिए रत्तीभर भी स्थान नहीं है। यह देश स्वर्ग की अपेक्षा भी श्रेष्ठ समझा जाता था। अतीत का इतिहास इस तथ्य को मुक्त कण्ठ से उद्घोष कर रहा है। भारतीय शिक्षा का इतिहास बताता है कि भारत सदैव ज्ञान क्षेत्र में अग्रणी रहा है। जब विश्व के अन्य देशों में बर्बरता एवं असभ्यता विद्यमान थी तब भारत जगतगुरु के पद पर आसीन होकर विशाल वैदिक सभ्यता एवं साहित्य का निर्माण कर रहा था। कालान्तर में इस धरा पर अनेक विदेशी आक्रमण हुए और देश के समृद्ध शैक्षिक ढांचे को प्रभावित किया, फलस्वरूप अनेक शैक्षिक समस्याएँ उत्पन्न हुई। इन शैक्षिक समस्याओं के समाधान व प्राचीन शैक्षिक व्यवस्था की पुनस्र्थापना हेतु ऋषि-मुनियों, संत-महात्माओं, शिक्षाविदों, दार्शनिकों के विचारों का अनुशीलन आवश्यक है। इसी परम्परा में एक दार्शनिक जिद्दू कृष्णमूर्ति हुए, जिन्होंने भारतीय दर्शन को प्रभावित किया। इनकी गणना आधुनिक युग के श्रेष्ठ विचारकों में होती है। जे. कृष्णमूर्ति के मौलिक दर्शन ने सभी धर्म, सत्य और यथार्थपरक जीवन को आकर्षित किया। जे. कृष्णमूर्ति ने किसी दार्शनिक विचारधारा अथवा दार्शनिक संप्रदाय की व्याख्या नहीं कि अपितु उन्होंने मानवतावाद को आधार मानकर मानव के कल्याण पर बल दिया। उनके अनुसार वास्तविक दर्शन वह है जो हमारे जीवन में सत्य के लिए प्रेम जागृत करता है। उनके अनुसार बाहरी एवं आंतरिक जगत में होने वाले प्रत्येक स्पंदन का प्रतिक्षण बोध होना ही दर्शन है उनका विचार था कि एक ऐसे समाज का निर्माण हो जिसमें सादगी, प्रेम, सहयोग की भावना हो जिसमें सदैव प्राणी मात्र के प्रति प्रेम हो। एक ऐसे समाज का निर्माण हो जिसमें जाति, धर्म, समाज, संस्कृति आदि के आधार पर विभेद न हो तथा सभी प्रेम और सहयोग की भावना से बँधे रहे। जे. कृष्णमूर्ति ने धर्म, आध्यात्म, दर्शन, मनोविज्ञान व शिक्षा को अपनी अंर्तदृष्टि के माध्यम से नए आयाम प्रदान किए हैं। कृष्णमूर्ति के विचार न केवल दार्शनिक दृष्टिकोण से वरन भौतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं जो जाति, धर्म और संप्रदाय में उलझे, असमंजस में पड़े हुए लोगों का मार्गदर्शन करते प्रतीत होते हैं। उन्होंने मानव जीवन के लगभग समस्त पहलुओं पर अपने विचार प्रकट किये हैं। जे. कृष्णमूर्ति के जीवन का एकमात्र उद्देश्य विश्व को शांति, संतुष्टि और संपूर्णता प्रदान करना था जिससे ईष्र्या, द्वेष और स्वार्थ का समूल नाश किया जा सके। कृष्णमूर्ति ने जिस तरह स्थापित परंपराओं को किनारे कर लोगों को आत्म साक्षात्कार की तरफ प्रेरित करने का काम किया था, वह उन्हें बीती सदी का सबसे अनोखा दार्शनिक बनाता है। उनकी समग्र जीवन दृष्टि, उनका दर्शन और सम्यक शिक्षा भारत ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व के लिए प्रासंगिक और महत्वपूर्ण है। प्रस्तुत शोध पत्र में जे. कृष्णमूर्ति के दार्शनिक एवं शैक्षिक विचारों की वर्तमान में उपादेयता का अध्ययन किया गया है।
Keywords समग्र शिक्षा, शांति, शैक्षिक विचार, सर्वांगीण विकास, मानवतावाद।
Field Sociology > Education
Published In Volume 6, Issue 2, March-April 2024
Published On 2024-04-01
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i02.15609
Short DOI https://doi.org/gtpw9x

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