International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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महेंद्र भीष्म द्वारा रचित किन्नर उपन्यास में व्यक्त संवेदना

Author(s) D MOHINI
Country India
Abstract समाज में विभिन्न वर्ग, वर्ण के लोगों का वास है। उसी प्रकार स्त्री, पुरुष भी हैं, और कुछ शारीरिक तौर से विकलांग भी हैं। विकलांगों में किसी को दिखाई नहीं देता, किसी को सुनाई नहीं देता, कोई बोल नहीं सकता आदि कई प्रकार के होते हैं, उन्हीं में से लैंगिक विकृति के भी लोग हैं। जब हम एक अंधे को देखते हैं तो उसके प्रति हमारी दया भाव उमड़ पड़ती है पर जब हम एक लैंगिक विकृति वाले इंसान को देखते हैं तो हमारी सोच बदल जाती है। उसे हम समाज से भिन्न समझते हैं। घृणा भाव तो कोई उन्हें घिनौनी दृष्टि से देखते हैं। पर उन्हें समाज का अंश नहीं समझा जाता। स्त्री और पुरुष दोनों ही गुण एकत्र मिलने पर उसे किन्नर या उभय लिंगी कहा जाता है। एक किन्नर को उनके समुदाय में सम्मिलित होने के लिए किसी योग्यता की आवश्यकता नहीं पड़ती बच्चे का उभय लिंगी जन्म होते ही किन्नर समुदाय में प्रविष्ट होने योग्य बन जाता है। किन्नर समुदाय की स्तिथि को अगर देखा जाए तो जब से मानव का जन्म हुआ तब से किन्नर समुदाय का भी जन्म हुआ है। समुदाय ने समाज में अपना स्वतंत्र पहचान बनाया है। समाज के बर्बर अत्याचारों को सहकर जीवन निर्वाह करता आया है। समुदाय के जीवन संघर्षों को साहित्यकारों ने आपने लेखनी के जरिए समाज के समक्ष उजागर किया है। उनमें प्रमुख हैं महेंद्र भीष्म ।
Keywords ट्रांसजेंडर हिस्ट्री , क्रोमोसोम , शल्यक्रिया , किन्नर
Field Arts
Published In Volume 6, Issue 2, March-April 2024
Published On 2024-03-28
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i02.15863
Short DOI https://doi.org/gtppc2

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