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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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सवाई जयसिंह द्वितीय के काल में वैज्ञानिक विकास :खगोल विज्ञान के विशेष संदर्भ में

Author(s) मनोहर दान
Country India
Abstract भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की एक अत्यंत समृद्ध विरासत रही है । प्राचीन काल से भारतीयों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विद्यमान रहा है। हडप्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमाणो से वहाँ के निवासियो की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। विज्ञान के विकास की यह परंपरा ईसा के जन्म से लगभग 200 वर्ष पूर्व से शुरू होकर ईसा के जन्म के बाद लगभग 11 वीं सदी तक काफी उन्नत अवस्था में थी। इस काल में आर्यभट्ट,वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, बोधायन, चरक, सुश्रुत,नागार्जुन जैसे विज्ञान के विद्वानों ने विज्ञान को आगे बढ़ाने में योगदान दिया। मौर्य,कुषाण,गुप्त सहित चोल और अहोम शासको ने विज्ञान की प्रगति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसी परम्परा को 18 वीं सदी में जयसिंह द्वितीय ने आगे बढ़ाया और एक सार्थक उन्नत वेधशालाओं का निर्माण करवाया।
भारत के इतिहास में सवाई जयसिंह द्वितीय ऐसे प्रमुख शासक है जिन्होंने वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास में ऐतिहासिक योगदान दिया है। खगोल विज्ञान और भूगोल के क्षेत्र में सार्थक कार्य किया।जयपुर शहर की स्थापना में इसी विज्ञान की झलक दिखाई देती हैं।
भारत के पश्चिमोत्तर में जयपुर रियासत महत्वपूर्ण थी। इस रियासत पर 1700 ईस्वी से 1743 ईस्वी तक सवाई जयसिंह द्वितीय का शासन रहा । इस काल मे में मुगल साम्राज्य का पतन हो रहा था और भारत में राजनीतिक अव्यस्था की स्थिति थी । इस संकट के काल में सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर सहित पाँच स्थानो पर सौर वेधशालाए और जन्तर मन्तर का निर्माण करवाया जो वैज्ञानिक विकास का अनुपम उदाहरण हैं। अपने द्वारा अन्वेषित यन्त्रों से प्राप्त आकडों के आधार पर 1725 ई में ग्रह नक्षत्रो की सारणी बनाई, जिसका नाम “जीज-ए-मुहम्मदशाही” रखा। स्वयं जयसिंह ने "यंत्रराज" नामक ग्रंथ की रचना की।
सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा किए गए वैज्ञानिक, खगोलीय और तकनीकी कार्य भारतीय विज्ञान परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। यह कार्य 18वीं सदी के इतिहास लेखन की अंधकार युग की कल्पना को चुनौती प्रदान करते हैं और 18वीं सदी के विकास को रेखांकित करते है। जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक ‘भारत की खोज’ में ,सवाई जयसिंह द्वितीय के वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वैज्ञानिक विकास की प्रशंसा की है।
इस शोध पत्र के माध्यम से जयसिंह द्वारा किये गये वैज्ञानिक और खगोलशास्त्र विकास के विभिन्न पहलुओं का विस्तारपूर्वक अवलोकन प्रस्तुत किया गया है। साथ ही,प्रस्तुत शोध पत्र में सवाई जयसिंह द्वितीय के ज्योतिष और खगोल संबंधित कार्यों को समकालीन शासकों और विश्व समुदायों के साथ तुलना भी की गई है।
Keywords सवाई जयसिंह द्वितीय,जयपुर रियासत,सौर वेधशाला,जंतर मंतर,खगोल शास्त्र,सवाई जयसिंह द्वितीय का खगोल शास्त्र में योगदान।
Field Sociology > Archaeology / History
Published In Volume 6, Issue 2, March-April 2024
Published On 2024-04-01
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i02.16427
Short DOI https://doi.org/gtpw5f

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