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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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औद्योगिक क्षेत्र में असंगठित श्रमिकों की शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन-म0प्र0 के विशेष संदर्भ में।

Author(s) Ajay Kumar Patel, Dhirendra Ojha, Jai Kant Gupta
Country India
Abstract सारांश
असंगठित श्रमिक से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो प्रत्यक्षतः या किसी एजेंसी या ठेकेदार के माध्यम से एक या अधिक अनुसूचित नियोजन में लगा हुआ, चाहे मजदूरी के लिये हो या बिना मजदूरी के लिए असंगठित श्रमिक कारखाना अधिनियम 1948 में नही आते हैं। असंगठित उद्योगों में सलंग्न श्रमिकों की सही संख्या उपलब्ध नहीं है क्योंकि इनका क्षेत्र अत्यंत व्यापक व विस्तृत रहता है। 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश की कुल कार्यशील जनसंख्या 3.15 करोड़ थी जिसमें से 90 प्रतिशत है से अधिक कार्यशील जनसंख्या असंगठित क्षेत्र में कार्यरत थी।
असंगठित श्रमिक नाम से ही स्पष्ट है जो श्रम कानून के अधीन नहीं आते हैं जिनकों सरकार की किसी भी योजनाओं में लाभ नहीं दिया जाता है। जो केवल संस्था में मजदूरी के लिए कार्य करते है। भारत में कुल कार्यबल का 90 प्रतिशत असंगठित कामगार है। असंगठित कामगार की परियोजना में ठेका श्रमिक, नैमत्तिक कामगार, घरों में कार्य करने, घर पर रहकर कार्य करने वाले, कृषि कामगार, महिला और बाल श्रमिक और वृहद मजदूर श्रमिक शामिल किये जाते हैं। असंगठित श्रमिकों के नियोजन में मौसमी और अनिष्चित रोजगार, अलग-अलग कार्यस्थल, नियोक्ता, कर्मचारी संबंध का अभाव, खराब कार्य स्थितियां, अनिश्चित और लम्बे कार्य घंटे और कम परिश्रमिक जैसी समस्याएँ आती है। उन्हें अपनी अलिखित स्थिति और संगठनात्मक सहायता के अभाव के कारण अत्यधिक सामाजिक असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। ओरिएंट पेपर मिल और नेपा. लि. (अखबारी कागज मिल) उद्योग को विकास के इंजन के रूप में और मध्य प्रदेश को निर्माण करने वाले राज्य बनाने हेतु सरकार के हाल के प्रयासों का उद्देश्य असंगठित कामगार को मुख्य धारा में लाना भी है ताकि वे भी राज्य और राष्ट्र के उत्थान में सहयोग कर सकें और उनके लिए सम्मानपूर्ण जीवन और कार्य करने का अनुकूल वातावरण प्रदान किया जा सकें।
असंगठित कामगारों की परिभाषा और वर्गीकरण असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 में असंगठित कर्मकार को जो किसी भी अधिनियम तथा संस्था में पंजीकृत नहीं किया गया हो जिसे मजदूरी करने वाले मजदूरों के रूप में परिभाषित किया गया है।
प्रस्तावनाः-
श्रमिक किसी भी राज्य की महत्वपूर्ण सम्पत्ती होते हैं जिनका मानसिक, शारीरिक एवं बौद्धिक विकास एक राज्य की औद्योगिक इकाई के लिए परमावश्यक होता है। असंगठित श्रमिकों के संतुलित विकास के लिए आवश्यक है उसकी स्थिति में शैक्षणिक प्रोत्साहन को महत्व देना चाहिए। क्योंकि इनके श्रम बल पर ही औद्योगिक इकाइयों की उन्नती का मार्ग खुलता है। हम जानते है कि असंगठित श्रमिक को औद्योगिक इकाईयों द्वारा किसी भी अधिनियम द्वारा पंजीकृत नहीं किया जाता है और न ही उनकी पारिश्रमिक देने का कोई मापदण्ड होता है। असंगठित क्षेत्र औद्योगिक इकाईयों के उपेक्षित क्षेत्रों में से एक है तथा वे राज्य औद्योगिक स्थल के श्रमिक होने के कारण काम का अधिकार, न्यायोचित एवं मानवीय कार्य व्यवस्था, निर्वाह मजदूरी, मातृत्व लाभ तथा उचित जीवन स्तर के बराबर रूप से हकदार है। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में श्रमिक वर्ग अपने हितो कि रक्षा के लिए संगठन बनाता है। ये संगठन नियोजकों पर विभिन्न प्रकार के दबाव डालकर मजदूरी में वृद्धि करवाते है, इनके प्रयास से भी प्रायः काम की दशाओं मे सुधार होता है। श्रमिक और नियोजकों के बीच सदैव संघर्ष रहा है। लेकिन असंगठित श्रमिकों के लिए कोई श्रम संघ नहीं होता क्योंकि अद्योगिक स्थल मे उनकी नौकरी स्थायी नहीं रहती है। इनको हम अगर मौसमी श्रमिक बोलें तो कोई गलत नही होगा। असंगठित श्रमिकों को संगठित श्रमिकों के श्रेणी मे लाने के लिए शिक्षा कि महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। शैक्षणिक पिछड़ापन के कारण ही श्रमिकों को असंगठित श्रमिक कि भूमिका में कार्य करना पड़ता है। इसके साथ ही ओद्योगिक स्थलों में कार्य के आधार पर अस्थायी श्रमिकों कि नियुक्ति (भर्ती) की जाती है, जिसमे शैक्षणिक स्थिति का कोई उल्लेख नहीं किया जाता है अद्योगिक स्थलो से कार्य कि समाप्ति पर उनको संस्था से बाहर कर दिया जाता है। मध्य प्रदेश शासन ने असंगठित कर्मकांर अधिनियम 2003 के अनुसार पंजीकृत श्रमिकों के बच्चों को शासकीय और अनुदान प्राप्त कॉलेजों मे स्नातक और सनातकोत्तर दोनों कक्षाओं में नियमित पाठ्îक्रमों में प्रवेश लेने पर शैक्षणिक शुल्क से छूट दी जायेगी। इसमें कोई जाती, धर्म, आय, पात्रता का बंधन नहीं होगा। वही उच्च शिक्षा विभाग द्वारा क्रियान्वित विक्रमादित्य शिक्षा योजना में असंगठित कर्मकार (श्रमिकों) के बच्चों को भी पात्र माना जायेगा।
Keywords मुख्य शब्द : असंगठित श्रमिक, असंगठित श्रमिक सामाजिक अधिनियम-2008, श्रमिक संघ।
Field Mathematics > Economy / Commerce
Published In Volume 6, Issue 2, March-April 2024
Published On 2024-04-20
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i02.17801
Short DOI https://doi.org/gtrsvb

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