International Journal For Multidisciplinary Research
E-ISSN: 2582-2160
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Volume 6 Issue 6
November-December 2024
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पेपर मिल्स में श्रमिकों की शोषणात्मक स्थिति का अध्ययन म.प्र. के विशेष संदर्भ में।
Author(s) | Ajay Kumar Patel, Dhirendra Ojha, Jai Kant Gupta |
---|---|
Country | India |
Abstract | सारांश म.प्र. में श्रमिकों की स्थिति सामान है। ये किसी भी संगठित और निजी संस्थाओं में देखने को मिल सकती है। म.प्र. में राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर दो ही पेपर मिल्स कार्यरत् हैं। इन्हीं मिलों में कार्य करने वाले तिहाडी़ असंगठित श्रमिक एवं अनुबंध आधारित श्रमिकों की शोषणात्मक स्थिति का अध्ययन कर विषय विषय को जानने की कोशिश है। अगर हम म.प्र. में श्रमिकों का पंजीयन देखें तो लगभग 1 लाख 80 हजार के आसपास है जो किसी न किसी संस्था में कार्यरत् है। वहीं अगर भारतवर्ष में श्रमिकों की संख्या का अध्ययन करें तो भारत की कुल आबादी का लगभग 42 प्रतिशत से 45 प्रतिषत श्रमिकों की संख्या है। भारत में श्रम बाजार विषाल है अनौपचारिक और असंगठित प्रकृति के उद्यमों और प्रतिष्ठानों में श्रमिक काम करते है। इसमें तिहाडी़ श्रमिक भी शामिल है। जिन्हे निजीकरण और उदारीकरण के समय में परिवर्तन किया गया है। श्रम बाजार के परिपेक्ष्य नए है, परंतु उनके शोषण की स्थिति में परिवर्तन ज्यों का त्यों बना हुआ है, इसी कारण आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होन पर भी श्रमिकों स्थिति में ज्यादा कुछ खास परिवर्तन नहीं हुआ। शोधकर्ताओं द्वारा पेपर मिल्स में कार्य करने वाले श्रमिकों की शोषणात्मक स्थिति का ही शोध पत्र प्रस्तुत किया गया है जिसमें ओरिएंट पेपर मिल अमलई (शहडोल) एवं अखबारी कागज मिल नेपानगर (बुरहानपुर) के द्वितीय आंकड़ों की जानकारी के आधार पर श्रम शोषण की स्थितियों का विष्लेषण किया गया है। तिहाडी़ कमजोर सामाजिक वर्ग के मजदूर अधिक पीड़ित है। स्थानीय ओरिएंट पेपर मिल के श्रमिकों की शोषणात्मक स्थिति के लिए अनुबंध आधारित व्यवस्था एवं दैनिक मजदूरी व्यवस्था उत्तरदायी है। मुख्य शब्दः अनुबंध आधारित व्यवस्था, असंगठित श्रमिक, असंगठित सामाजिक वर्ग नीति 2008। प्रस्तावनाः- प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों की स्थिति पर प्रकाश डालना है। शोध का पद्धतिशास्त्र, गुणात्मक तथा स्तरित दैव निदर्शन से पूरा किया गया एवं संदर्भित किया गया है। श्रमिक एक विशुद्ध सामाजिक व्यक्तिगत अवधारणा है। जिसका प्रयोग सामाजिक रूप से जो व्यक्ति उपेक्षा, शोषण और उत्पीड़न का शिकार हुआ है। श्रमिक शब्द का प्रयोग ऐसे व्यक्ति के लिए किया जा रहा है जिन्हे अमानवीय व्यवहार, अन्याय, भेदभाव, दुराचार ऊॅंच-नीच की भावना कार्य की प्रधानता न देना सामाजिक निर्योग्यताओं, सामाजिक प्रताड़ना राजनीतिक एवं आर्थिक वचंनाओं और असुविधाओं का लम्बे समय में गुजरना पड़ रहा है। इन्हीं क्रियाओं को श्रमिकों का शोषण वर्तमान समय में पेपर मिल्स में किया जा रहा है। श्रमिकों का शोषणात्मक स्थिति में उनको प्रताड़ना जैसे कि कम मजदूरी देना, यातनाएं देना ही शामिल नहीं है बल्कि, उनको मानसिक प्रताड़ना भी शामिल है। जिनसे उनका मानसिक विकास नहीं हो पाता है। हम जानते हैं कि श्रमिक श्रम बेचता है अपने आपको नहीं, श्रमिक अपना श्रम यानी कौशल आर्थिक लाभ के लिए बेचता है अपने आपको नहीं यानी उसका अपने कौशल पर उसका स्वामित्व रहता है। श्रम शब्द को परिभाषित करते हुए प्रो. मार्शल कहते है कि श्रम का अभिप्राय मानसिक या शारीरिक से लिया जाता है, जो पूर्णतया या आंशिक रूप से आनंद की प्राप्ति के लिए न होकर लाभ प्राप्ति के लिए किया जाता है। श्रमिकों की आजीविका उनकी शारीरिक श्रम पर आधारित होती है। खासतौर पर तिहाड़ी श्रमिको की जिन्हे घण्टों के आधार पर मजदूरी दी जाती है, ऐसे वर्ग को श्रमिक की श्रेणी में रखा गया है। हमारे भारतीय संविधान में श्रमिको का विशेषाधिकार प्राप्त हैं। कुछ जनसंख्या के आधार पर आरक्षण प्राप्त है। किन्तु ये आरक्षण का लाभ आज भी सभी वंचित व्यक्ति को शत-प्रतिशत नहीं मिल पा रहा है और न ही सरकार इस पर समीक्षा करती है। आज जिन श्रमिकों के वंशज श्रमिक थे वर्तमान में भी वे श्रमिक का कार्य करने के लिए मजबूर है। इनकी सामाजिक निर्योगिताओं एवं आर्थिक, शैक्षणिक, पिछड़ापन दूर करने तथा इन्हे विशेष सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक तथा राजनैतिक सुरक्षा प्रदान की गई है। गरीबी, गंदगी, बीमारी और अशिक्षा का शिकार ये वर्ग समाज से बहिष्कृत और नागारिक अधिकारों से वंचित रहा है। हालांकि औद्योगिक क्षेत्रों में सरकार ध्यान दे रही है जिससे इनकी आर्थिक, शैक्षणिक स्थिति में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। शोषणः- शोधकर्ता द्वारा पेपर मिल्स में कार्यरत् श्रमिकों का शोषणात्मक स्थिति का अध्ययन शोध पत्र में किया गया है। शोषण का तात्पर्य उन सभी प्रकार के उत्पीड़न से है जो समाज के उच्च एवं सम्पन्न वर्गों से अपना रक्षा कर पाने में अपने आपको असमर्थ पाते हैं। सामान्यतः शोषण की श्रेणी में अमानवीय व्यवहार कार्य को महत्व न देना मजदूरी के लिए परेषान करना, लालफीता -शाही, ऊंच-नींच की भावना, भेदभाव, अन्याय हिंसा संम्बधी, दुर्घटनाएं आदि से है। जिसमें श्रमिकों को मानसिक पीडा़ होती है जिससे उनकी मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति बदल सी जाती है। जिससे श्रमिकों की कार्य करने की क्षमता अवरुद्ध होती है जिसका असर उनके भविष्य पर भी पड़ता है। कभी-कभी तो श्रमिक वर्ग इतने शोषित होते हैं कि ये आत्मघाती कदम उठा लेते हैं एवं इनकी मौत भी हो जाती है। शोषण निवारण अधिनियम 1989 के अन्तर्गत श्रमिक वर्ग के विरुद्ध उच्च एवं सम्पन्न वर्गों द्वारा अस्पृष्यता के भेदभाव सहित किये गये 27 प्रकार के अपराधों कों सम्मिलित किया गया है। ऐसे सभी शोषण जिनको जिला श्रम कल्याण प्रकोष्ठ में भारतीय दण्ड विधान संहिता, नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम-1955, तथा शोषण निवारण अधिनियम 1989 के अन्तर्गत पंजीबद्ध किये गये हैं। ये सभी शोषण की श्रेणी में आते हैं। |
Keywords | अनुबंध आधारित व्यवस्था, असंगठित श्रमिक, असंगठित सामाजिक वर्ग नीति 2008। |
Field | Mathematics > Economy / Commerce |
Published In | Volume 6, Issue 2, March-April 2024 |
Published On | 2024-04-20 |
Cite This | पेपर मिल्स में श्रमिकों की शोषणात्मक स्थिति का अध्ययन म.प्र. के विशेष संदर्भ में। - Ajay Kumar Patel, Dhirendra Ojha, Jai Kant Gupta - IJFMR Volume 6, Issue 2, March-April 2024. DOI 10.36948/ijfmr.2024.v06i02.17802 |
DOI | https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i02.17802 |
Short DOI | https://doi.org/gtrst9 |
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10.36948/ijfmr
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