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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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आधुनिक राजस्थान में परिवहन: एक विकासात्मक अध्ययन

Author(s) Rajesh Kumar Meena
Country india
Abstract परिवहन, यातायात एवं संचार साधनों की सकारात्मक सामाजिक-आर्थिक भूमिका होती है। व्यापार में इनके महŸव को कम करके नहीं आंका जा सकता। 19वीं सदी के अन्तिम तीन दषकों के दौरान परिवहन, यातायात एवं संचार के आधुनिक साधनांे का विकास हुआ । इसके पूर्व परम्परागत साधन ही मुख्य थे, जो व्यापारिक कार्योें के संचालन में उपयोगी थें । यातायात एवं परिवहन के परम्परागत साधनों में मुख्यत ऊँट, बैल, घोड़े, गधे, खच्चर, टटटू, बैलगाड़ी एवं ऊँंटगाड़ी आदि का उपयोग होता था। बैलगाड़ियों एवं ऊँटगाड़ियों का उपयोग स्थानीय स्तर पर कम दूरी के लिए होता था। लम्बी दूरी तक माल के लाने ले जाने का कार्य अधिकांषतः बैलों व ऊँटों की पीठ पर लादकर किया जाता था। 1870 ई. की अकाल रिपोर्ट में उल्लेख मिलता हैं कि राजस्थान के बाहर जाने वाले नमक के ढोने के कार्य में 3,50,000 बैल एवं 50,000 ऊँट संलग्न थे जबकि नमक ढोने के लिए 5 लाख बैलों को आवष्यकता थी। पारगमन व्यापार मेें माल परिवहन के कार्य में मुख्यतः बंजारे संलग्न थे।1
बंजारों का राजस्थान की व्यापारिक क्रियाओं में भारी महŸव था जो रेलवे की स्थापना के बाद कम होने लगा था। बंजारा एक व्यावसायिक जाति थी। बंजारे हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मों को मानने वाले थे जिन्हें क्रमषः हिन्दू बंजारा एवं मुसलमान बंजारों के नाम से जाना जाता है। बंजारों का पारगमन व्यापार में सलंग्न होने का ही परिणाम था कि वे यूरोप देषों में भारी संख्या में पहुँच गये थे। विषेषकर जर्मनी के जिप्सी लोगों को राजस्थान के बंजारा बताया गया है। मध्यकाल से ही बंजारों का राजस्थान की व्यापारिक गतिविधियों में महŸवपूर्ण स्थान था। बंजारे एक स्थान से दूसरे स्थान तक सामान लादकर ले जाकर आंतरिक बाह्य व्यापार के संचालन में भारी सहयोगी थे। अकाल के समय बंजारों का अनाज लेकर जोधपुर में आना वांच्छित था। 1783 में जोधुपर महाराजा ने धन्ना, दुर्गा, मोती, एवं उनके नेता नानू को हीरों का हार एवं सम्मान वस्त्र प्रदान किये थे जो इस वर्ष जोधपुर अनाज लेकर आये थे।
बंजारों के संदर्भ में अनेक रोचक जानकारियां मिलती है। एक रोचक विवरण इस प्रकार हैं ‘‘बंजारा’’ या बिणजारे वाणिज्य करने से विख्यात हुए हैं। रेल के पहले बिणजारों की वालद से ही लाखों मण माल भारत के हर प्रांत में भेजा जाता था। हिन्दी विष्वकोष में लिखा हैं कि बंजारा का नाम ’दषकुमारचरित’ में भी है। इनके कई देष और कई खांप है। मथुरा के बंजारे ’मथुरिया’ कहलाते है। लवण बेचने वाले ‘‘लूणियां’’ कहलाते है। इधर-उधर आने वाले ’चार’ कहलाते है। मुसलमान बादषाहों के जमाने में देष के राजाओं का माल असबाब ये ही लाते-ले-जाते थे। यह संवत् 1565 में पहले पहल यहां आए थे। 1587 में आसुफ-जई के अधीन रहे थे। उसने इनको तांबे के पत्र में सोना के अक्षर लिखवा के पट्आ कर दिया था। जिसको देखकर सभी देषों के षासक इन पर विष्वास करते थे और हैदराबाद के नवाब ने इनको सम्मान का खिलअत दिया था। इनमें
’लक्खी बिणजारा’ विषेष विख्यात हुआ। उसके पास एक लाख बैल थे और वह परम विष्वासी था। उसने भारत में अनेक जगह अति विषाल कुँए और बावड़ियाँ उसी की बनवाई हुई है। वह बड़ा पक्का हिसाबी था। अपने दौरे में हजारों बैलों पर माल लाद कर हर जगह यथा स्थान पहँुचाता और प्रत्येक व्यापारी का पूरा माल तथा हिसाब संभालता था। उसके सब हिसाब जबानी रहते थे परन्तु किसी में कौडी की भी गलती नहीं होती थी। उसके बैल और आदमी हर जिले में मौजूद रहते थे। उन दिनों चैमू में भी 4 हजार बैल थे जिनको जोगी लादते थे। हर्दाई जिले में मुसलमान बंजारे थे। मद्रास में रामभक्त सुग्रीव के वंष के बंजारे थे। पष्चिम के बंजारे 36 गोत्र के थे। भटनेर के बंजारे ’वैद’ कहलाते हैं। ये जादू भी जानते हैं मुकेरी के बंजारे मक्का से आए हुए है। बहुरूपिया बंजारे हिन्दू थे।
बंजारों के अतिरिक्त व्यापारिक माल परिवहन के व्यवसाय में अनेक लोग संलग्न थे। भिवानी से मारवाड़ एवं बीकानेर तथा बीकानेर से भावलपुर मार्ग पर व्यापारिक माल लाने व लेजाने का कार्य सिक्ख लोग करते थे, जिन्हें ‘‘दीवाना फकीर’’ कहा जाता था। जैसलमेर, जोधपुर से पंजाब के मार्ग पर मुलर ब्राह्मण यह कार्य किया करते थे।
Keywords परिवहन व्यवस्था, आधुनिक राजस्थान के परिवहन प्रणाली
Field Sociology > Administration / Law / Management
Published In Volume 5, Issue 2, March-April 2023
Published On 2023-03-11
Cite This आधुनिक राजस्थान में परिवहन: एक विकासात्मक अध्ययन - Rajesh Kumar Meena - IJFMR Volume 5, Issue 2, March-April 2023.

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