
International Journal For Multidisciplinary Research
E-ISSN: 2582-2160
•
Impact Factor: 9.24
A Widely Indexed Open Access Peer Reviewed Multidisciplinary Bi-monthly Scholarly International Journal
Home
Research Paper
Submit Research Paper
Publication Guidelines
Publication Charges
Upload Documents
Track Status / Pay Fees / Download Publication Certi.
Editors & Reviewers
View All
Join as a Reviewer
Get Membership Certificate
Current Issue
Publication Archive
Conference
Publishing Conf. with IJFMR
Upcoming Conference(s) ↓
WSMCDD-2025
GSMCDD-2025
Conferences Published ↓
RBS:RH-COVID-19 (2023)
ICMRS'23
PIPRDA-2023
Contact Us
Plagiarism is checked by the leading plagiarism checker
Call for Paper
Volume 7 Issue 2
March-April 2025
Indexing Partners



















सतत् विकास की अवधारणाः पर्यावरण एवं विकास के बीच सामंजस्य-संतुलन
Author(s) | राकेश कुमार सामोता |
---|---|
Country | India |
Abstract | ”अन्तिम वृक्ष को काट दिये जाने के बाद..... अन्तिम नदी को विषाक्त करने के बाद...... अन्तिम मछली पकड़ लिये जाने के बाद...... हम पाएंगे कि पैसे को खाया नहीं जा सकता है“ उपयुक्त वाक्य पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय, भारत सरकार की वार्षिक रिपोर्ट 2020-21 के मुख्य पृष्ठ पर अंकित है। ये सतत् विकास की आवश्यकता को बेहतर ढंग से निरूपित करते हैं। ये संदेश देते हैं कि आर्थिक प्रगति तभी संपोषणीय हो सकती है, जब पर्यावरण और विकास में बेहतर संतुलन हो। सतत् विकास उसे कहते हैं जिसमें भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने की योग्यता से कोई समझौता किए बगैर अपनी वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है। सतत् विकास वास्तव में साधन सम्पन्न लोगों की तुलना में साधनहीन लोगों तथा वर्तमान पीढ़ी से अधिक भावी पीढ़ी को महŸव देता है। भारत सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये अर्न्तराष्ट्रीय समझोतो एवं अभिसमयों का अनुपालन करने में कभी पीछे नहीं हटा है। भारत ने जलवायु परिवर्तन सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र रूपरेखा अभिसमय ;न्छथ्ब्ब्ब्द्ध पर हस्ताक्षर किया है। भारत ने जैव-विविधता सम्बन्धी अभिसमय ;ब्ठक्द्धपर भी हस्ताक्षर किया है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत न केवल अपने नागरिकों की जीवन गुणवŸाा में सुधार के प्रति प्रतिबद्ध है, बल्कि सतत् विकास के लिये अर्न्तराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर सक्रिय भी है। भारत में गरीबी निवारण के लिये कई लक्षित योजनाओं कार्यक्रमों एवं नीतियों की शुरूआत की गई है। या तो प्रत्यक्ष रूप से रोजगार सृजन, प्रशिक्षण या गरीबों के लिये परिसम्पŸिायों के निर्माण पर ध्यान दिया जा रहा है। या अप्रत्यक्ष रूप से मानव विकास विशेषकर शिक्षा स्वास्थ्य एवं महिला सशक्तिकरण पर बल दिया जा रहा है। विŸाीय समावेशन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। वन, प्रदूषण नियन्त्रण, जल प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन, स्वच्छ ऊर्जा, समुद्री एवं तटीय पर्यावरण से सम्बन्धित विभिन्न नीतियों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित किया जा रहा है। राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 स्वच्छ पर्यावरण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। पर्यावरण से जुडी चिन्ताओं को दूर करने में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम, 2010 ;छळज्द्धकाफी महŸवपूर्ण साबित हो रहा है। प्राकृतिक संसाधनों के क्षय एवं पर्यावरणीय गुणवŸाा में गिरावट के रूप में पर्यावरणीय चुनौती बनी हुई है जबकि जलवायु परिवर्तन जैसी नई चुनौतियाँ भी उभर रही है। इन चुनौतियों का समाधान करके ही सतत् विकास की प्राप्ति की जा सकती है जिसमें उचित सरकारी नीतियों के साथ-साथ नागरिकों गैर-सरकारी संगठनों, स्थानीय प्राधिकरणो तथा व्यापारिक एवं औद्योगिक समूहों की भागीदारी महŸवपूर्ण होगी। यंत्रों, स्वच्छ तकनीकों विज्ञान एवं अर्थव्यवस्था संचालित पद्धतियों तथा विकेन्द्रीकृत उपागमों को अपनाने से आर्थिक विकास गरीबी उन्मूलन में सक्षम होगा और तभी यह सामाजिक रूप से समावेशी तथा पारिस्थितकीय रूप से टिकाऊ होगा। |
Keywords | पर्यावरण, समाज, आर्थिक प्रणाली |
Field | Arts |
Published In | Volume 5, Issue 2, March-April 2023 |
Published On | 2023-04-01 |
Share this

E-ISSN 2582-2160

CrossRef DOI is assigned to each research paper published in our journal.
IJFMR DOI prefix is
10.36948/ijfmr
Downloads
All research papers published on this website are licensed under Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 International License, and all rights belong to their respective authors/researchers.
