International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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प्रेमचंद के साहित्य में नारी संघर्ष और चुनौतियाँ

Author(s) ममता सिंह
Country India
Abstract मुंशी प्रेमचंद एक जनवादी तथा प्रगतिशील लेखक थे। प्रेमचंद हिंदी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक रहे है | उन्होंने कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया, जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया | प्रेमचंद ने अपना लेखन सन 1908 ई. के आसपास शुरु किया और 1936 तक उनकी कलम बिना रुके चलती रही. यह वह समय था जब भारतीय समाज में स्त्रियाँ दासी की तरह जी रही थी | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने ठीक ही लिखा था कि हमारे समाज में स्त्रियाँ दासों की दासियाँ हैं | यह वह समय था , जिसमें स्त्रियाँ एक साथ उपनिवेशवाद और सामंतवाद की चक्की में पिस रही थी | उन्हें समाज में पुरुषों के जैसा अधिकार प्राप्त नहीं था, यही वजह थी कि प्रेमचंद नारियों के तत्कालीन दशा से संतुष्ट नहीं थे | मध्यवर्ग, निम्नवर्ग की नारियां अपने अधिकारों से वंचित थी। ज़मींदार, महाजन आदि परिवार की स्त्रियाँ घरेलू कार्यों तक सीमित थी जबकि काश्तकार आदि वर्ग की स्त्रियाँ घरेलू कार्यों के साथ-साथ खेतों में भी काम करती करती थीं। मध्यम वर्ग के परिवारों में नारी-शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता था। ऐसे समय में प्रेमचंद ने नारी समस्या को मुख्य विषय बनाया तथा अपने मध्यम व् निम्न वर्ग की स्त्रियों को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही नहीं बल्कि अपने उपन्यास एवं कहiनियों के माध्यम से नारी की दुर्दशा को उजागर किया, जो हिंदी साहित्य को दी हुई अपूर्व देन है। प्रेमचंद ने कहा है- नारी की उन्नति के बिना समाज का विकास संभव नहीं है, उसे समाज में पूरा आदर दिया जाना चाहिए तभी समाज उन्नति करेगा। प्रेमचंद की नारी भावना ने साहित्य में एक युगांतर प्रस्तुत किया है।
Keywords समाज में नारी की दशा, संघर्ष और चुनौतियाँ
Field Sociology > Linguistic / Literature
Published In Volume 5, Issue 2, March-April 2023
Published On 2023-04-21
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i02.2466
Short DOI https://doi.org/gr6h9n

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