International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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प्राचीन भारत में सुरापान

Author(s) Chanchal Garg
Country India
Abstract न उत्पादन ने मानव जीवन मे अनेक मादक द्रव्य भी दे दिए। शायद किण्वित भोजन ने उसके जीवन में सुरा का प्रचलन कर दिया। विविध मसाले फल फूल अनाज, पेड़ों की छाल पत्तियों, जड़ घासों के संयोजन से विविध प्रकार की सुरा का निर्माण किया जाने लगा। सामान्यजन में इसका बहुतायत से प्रचलन था । उत्सवों , वैवाहिक अवसरों सभा गोष्ठियों में इसका पान सामान्य था। जहां स्त्री पुरुष दोनों इसका आनंद लेते थे। लेकिन अति सर्वत्र वर्ज्यते की भांति इसका अधिक प्रयोग निषेध किया गया था। सुरा विक्रय हेतु स्थान निर्धारित थे। कौटिल्य ने स्पष्ट कहा था कि दुकानदार ध्यान रखे कि किसको आधा सेर और किसको पाव सेर सुरा देनी है। सुरा सेवन करने वाले व्यक्ति के सामान की सुरक्षा भी दुकानदार का कर्तव्य होता था। इसके पान से उत्पन्न दोषों के कारण इसका सेवन प्रतिबंधित किया गया था। स्त्रियों और ब्राह्मणों को सख्त निर्देश थे कि इसका सेवन ना करे। अगर भूलवश हो भी जाये तो प्रायश्चित विधान था।
Keywords सुरा, आसव, पानभूमि, मदिरालय, सीधू, मरैया।
Published In Volume 6, Issue 4, July-August 2024
Published On 2024-07-25
Cite This प्राचीन भारत में सुरापान - Chanchal Garg - IJFMR Volume 6, Issue 4, July-August 2024. DOI 10.36948/ijfmr.2024.v06i04.25137
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i04.25137
Short DOI https://doi.org/gt5hkt

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