International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

A Widely Indexed Open Access Peer Reviewed Multidisciplinary Bi-monthly Scholarly International Journal

Call for Paper Volume 7, Issue 2 (March-April 2025) Submit your research before last 3 days of April to publish your research paper in the issue of March-April.

प्रेम नारायण ‘पंकिल’ के काव्य में विप्रलम्भ शृंगार: एक अध्ययन

Author(s) Amod Prakash Chaturvedi
Country India
Abstract हिन्दी साहित्य का स्थापित संसार कवि श्री प्रेम नारायण ‘पंकिल’ के नाम से अपरिचित-सा ही है। ऋषिधर्मा कवि श्री ‘पंकिल’ एक बहुमुखी साहित्यकार हैं जिन्होंने साहित्य की लगभग हर विधा में अपनी लेखनी चलाई है। आज के अतुक और अगेय कविता के दौर में पंकिल अपनी कविताओं में मधुर संगीत रच जाते हैं। यथार्थवाद के तुमुलनाद में पंकिल अपनी कल्पना की प्रतिभा से एक मखमली वितान रच जाते हैं। नवनवोन्मेषशालिनी प्रज्ञा उनसे बहुत कुछ ऐसा रचवा लेती है जहाँ आज के पार्टीवादी साहित्यकार और कवियों की पहुँच हो ही नहीं सकती हैं। वर्तमान समय में भाषा के अवयवों की बात तो छोड़ ही दी जाय नाद-सौंदर्य भी अब अतीत की वस्तु है। ऐसे में पंकिल की कवितायें हमें काव्य-भाषा का ज्ञान कराती-सी प्रतीत होती हैं। सकलडीहा इण्टर कॉलेज सकलडीहा, चंदौली में अंग्रेजी के प्रवक्ता पद से सेवानिवृत्त श्री ‘पंकिल’ अहर्निश साहित्य-शिल्पन में जुटे हुए हैं। प्रस्तुत आलेख में भारतीय काव्यशास्त्रीय मानकों पर उनके काव्य में विप्रलम्भ-शृंगार का एक अध्ययन प्रस्तुत कर किया गया है।
Keywords संयोग, वियोग, विरह-दशायें, प्रवास
Field Sociology > Linguistic / Literature
Published In Volume 5, Issue 2, March-April 2023
Published On 2023-04-28
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i02.2708
Short DOI https://doi.org/gr7hhz

Share this