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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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महाकवि भारवि रचित किरातार्जुनीयम् महाकाव्य का पारिस्थैतिक एवं राजनैतिक विश्लेषणः

Author(s) डॉ. वन्दना मिश्रा
Country India
Abstract भारवि अपने अर्थ-गौरव या गहन-गम्भीर भाव-सम्पदा के लिए जाने जाते हैं। उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम, इस अर्थ-गौरव से मेल खाती एक विदग्ध भाषा और अभिव्यक्ति-कौशल भी उनके यहाँ मौजूद है। राजनीति और व्यवहार-नीति सहित जीवन के विविध आयामों में उनकी असाधारण पैठ है। आदर्श और व्यवहार के द्वंद्व तथा यथार्थ जीवन के अतिरेकों के समाहार से अर्जित पारिस्थैतिक संतुलन उनके लेखन को ‘समस्तलोकरंजक’ बनाता है। लेकिन भारवि मूलतः जीवन की विडंबनाओं और विसंगतियों के कवि हैं, वे उनका सामना करते हैं और उनके खुरदुरे यथार्थ के बीच संगति बिठाने का प्रयास करते हैं। किरातार्जुनीयम् भारवि की एकमात्र उपलब्ध कृति है, जिसने एक सांगोपांग महाकाव्य का मार्ग प्रशस्त किया। माघ-जैसे कवियों ने उसी का अनुगमन करते हुए संस्कृत साहित्य भंडार को इस विधा से समृद्ध किया और इसे नई ऊँचाई प्रदान की। राजनीति और व्यवहार-नीति में भारवि के विशेष रुझान के चलते यह युक्तियुक्त ही था कि वे किरातार्जुनीयम् का कथानक महाभारत से लेते हैं। उन्होंने वनपर्व के पाँच अध्यायों से पांडवों के वनवास के समय अमोघ अस्त्र के लिए अर्जुन द्वारा की गई शिव की घोर तपस्या के फलस्वरूप पाशुपतास्त्र प्राप्त करने के छोटे-से प्रसंग को उठाकर उसे अठारह सर्गों के महाकाव्य में फैला दिया है।
Keywords किरातार्जुनीयम् नीतिशास्त्र, राजनीति, पारिस्थैतिक तथा लोकव्यवहार का महा काव्य है।
Field Arts
Published In Volume 6, Issue 5, September-October 2024
Published On 2024-09-10
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i05.27359
Short DOI https://doi.org/gwfggn

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