International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

A Widely Indexed Open Access Peer Reviewed Multidisciplinary Bi-monthly Scholarly International Journal

Call for Paper Volume 7, Issue 2 (March-April 2025) Submit your research before last 3 days of April to publish your research paper in the issue of March-April.

बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा श्रीमद् भागवत गीता का विवेचन

Author(s) डा॰ भगत सिंह,, दर्शन
Country India
Abstract बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने श्रीमद् भागवत गीता का विश्लेषण एक समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से किया, जिसमें उन्होंने गीता को सामाजिक न्याय और जातिगत भेदभाव के संदर्भ में देखा। उनके अनुसार, गीता में वर्णित कर्मयोग का सिद्धांत सामाजिक असमानता को बनाए रखने के लिए प्रयोग किया गया, जिससे जाति व्यवस्था को धार्मिक समर्थन मिला। अम्बेडकर ने गीता को उस समय की ब्राह्मणवादी विचारधारा का एक हिस्सा माना, जो उच्च जातियों के हितों की रक्षा करती थी और सामाजिक सुधार के प्रयासों को हतोत्साहित करती थी। उन्होंने गीता के उपदेशों को समाज के कमजोर और दलित वर्गों के खिलाफ एक उपकरण के रूप में देखा, जो उन्हें उनकी सामाजिक स्थिति को स्वीकार करने और उसमें संतुष्ट रहने के लिए प्रेरित करता था। इस प्रकार, डॉ॰ अम्बेडकर ने गीता को एक ऐसे ग्रंथ के रूप में देखा, जो सामाजिक अन्याय को वैधता प्रदान करता है और सुधार की राह में बाधा डालता है।
Published In Volume 6, Issue 5, September-October 2024
Published On 2024-09-13
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i05.27406
Short DOI https://doi.org/gzwp4j

Share this