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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा श्रीमद् भागवत गीता का विवेचन

Author(s) डा॰ भगत सिंह,, दर्शन
Country India
Abstract बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने श्रीमद् भागवत गीता का विश्लेषण एक समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से किया, जिसमें उन्होंने गीता को सामाजिक न्याय और जातिगत भेदभाव के संदर्भ में देखा। उनके अनुसार, गीता में वर्णित कर्मयोग का सिद्धांत सामाजिक असमानता को बनाए रखने के लिए प्रयोग किया गया, जिससे जाति व्यवस्था को धार्मिक समर्थन मिला। अम्बेडकर ने गीता को उस समय की ब्राह्मणवादी विचारधारा का एक हिस्सा माना, जो उच्च जातियों के हितों की रक्षा करती थी और सामाजिक सुधार के प्रयासों को हतोत्साहित करती थी। उन्होंने गीता के उपदेशों को समाज के कमजोर और दलित वर्गों के खिलाफ एक उपकरण के रूप में देखा, जो उन्हें उनकी सामाजिक स्थिति को स्वीकार करने और उसमें संतुष्ट रहने के लिए प्रेरित करता था। इस प्रकार, डॉ॰ अम्बेडकर ने गीता को एक ऐसे ग्रंथ के रूप में देखा, जो सामाजिक अन्याय को वैधता प्रदान करता है और सुधार की राह में बाधा डालता है।
Published In Volume 6, Issue 5, September-October 2024
Published On 2024-09-13
Cite This बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा श्रीमद् भागवत गीता का विवेचन - डा॰ भगत सिंह,, दर्शन - IJFMR Volume 6, Issue 5, September-October 2024. DOI 10.36948/ijfmr.2024.v06i05.27406
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i05.27406
Short DOI https://doi.org/gzwp4j

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