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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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Parivarik Vatavaran Ke Sambandh Me Mahila Kishoron Ke Samayojan Ka Tulnatmak Addhyyan

Author(s) Kiran karnatak, Deepa Pandey
Country India
Abstract सारांश –
पारिवार को बालक के समाजीकरण के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक के रूप में नामित किया जा सकता है | घर का माहौल और पारिवारिक रिश्ते, बालक के विकास पर गहरा प्रभाव डालते हैं | बालक अपने माता -पिता से सामाजिक गुणों का पहला पाठ सीखता है | जानबूझ कर या अनजाने में, वह अपने माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के व्यवहार का अनुकरण करता है और इस प्रकार कई अच्छी या बुरी विशेषताओं को अपनाता है जो उसके जीवन के अंत तक उसके साथ रहती हैं | परिवार का आकार, परिवार के बीच आपसी संबंध, माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों का रवैया, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और समाज में परिवार की स्थिति, परम्पराएं, संस्कृति, मूल्य और परिवार के आदर्श – ये सभी बालक के सर्वांगीण विकास को प्रभावित करते हैं| एक ऐसा परिवार, जो एक स्वस्थ सामाजिक वातावरण प्रदान करता है और जहाँ बालकों की बुनियादी जरूरतें पूरी होती हैं, सामाजिक रूप से संतुलित व्यक्तित्व पैदा करता है, जबकि वे घर जहाँ पारिवारिक रिश्ते तनावपूर्ण होते हैं और बड़ों में नकारात्मक सामाजिक विशेषताएं होती हैं, उनमें बच्चों का पालन-पोषण ठीक से नहीं होता है और परिणामस्वरूप सामाजिक रूप से अवांछनीय और नकारात्मक व्यक्तित्व पैदा होता है | इसलिए बालकों के समुचित विकास के लिए परिवार में उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराने में माता-पिता का सक्रिय सहयोग प्राप्त करना आवश्यक है| समायोजन एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमें एक सुखी और खुशहाल जीवन की ओर ले जाती है |
स्वस्थ समायोजन व्यक्ति के जीवन और शिक्षा में सामान्य विकास के लिए अति आवश्यक है| शिक्षा किशोरों को वर्तमान और भविष्य की विभिन्न परिस्थितियों में स्वस्थ समायोजन के लिए प्रशिक्षित करती है | इस तर्क का तात्पर्य है कि शिक्षा और समायोजन परस्पर जुड़े हुए हैं और एक दूसरे के पूरक हैं| इसलिए शिक्षकों और शोधकर्ताओं के लिए यह आवश्यक है कि वे किशोरों के समायोजन की प्रव्रत्तियों और उनके अच्छे मानसिक स्वास्थ में योगदान करने वाले कारकों को समझें | किशोरों को समायोजन सम्बन्धी समस्याओं का सामना अधिक करना पड़ता है, किशोरावस्था में होने वाले तीव्र परिवर्तन इन समस्याओं का प्रमुख कारण बनते हैं | एक किशोर में स्थायित्व एवं समायोजन का अभाव होता है तथा इनका जीवन बहुत अधिक भावनात्मक होता है | बालक की इच्छाओं तथा आवश्यकताओं की पूर्ति कभी सरलता से हो जाती है और कभी उसमें बाधा उत्पन्न होती है, जिस कारण किशोरों में तनाव उत्पन्न होता है | किशोर जिन व्यक्तियों एवं परिस्थियों के साथ प्रसन्नता व संतुष्टि का अनुभव करते हैं उनके साथ किशोर का समायोजन अच्छा होता है तथा जिन व्यक्तियों एवं परिस्थियों के साथ वह अप्रसन्नता व असंतुष्टि का अनुभव करते हैं उनके साथ किशोर का समायोजन अच्छा नहीं होता है | किसी भी बालक का वर्तमान एवं भविष्य सुखी और आनन्ददायक तभी हो सकता है, जब उसका व्यवहार समायोजित हो |
प्रस्तुत अध्ययन का उददेश्य महिला किशोरों (14-17 वर्ष) के समायोजन स्तर का पारिवारिक वातावरण के सन्दर्भ में तुलनात्मक अध्ययन करना है | अध्ययन की योजना के अनुसार 80 महिला किशोरों (40 अनुकूल पारिवारिक वातावरण तथा 40 प्रतिकूल पारिवारिक वातावरण) का चयन यादृच्छिक प्रतिदर्श विधि द्वारा किया गया | समायोजन स्तर के मापन हेतु “ प्रो. ए.के.पी. सिन्हा तथा डॉ. आर.पी. सिंह निर्मित समायोजन मापनी (AISS) ” का प्रयोग किया गया | किशोरों के समायोजन स्तर के मध्य तुलनात्मक अध्ययन हेतु t – परीक्षण का प्रयोग किया गया | अध्ययन परिणाम में किशोर एवं किशोरियों के समायोजन स्तर के मध्य 0.05 प्रतिशत विश्वास के स्तर पर सार्थक अन्तर पाया गया (t = 7.70) | परिणामों से स्पष्ट है कि अनुकूल पारिवारिक वातावरण तथा प्रतिकूल पारिवारिक वातावरण के किशोर एवं किशोरियों के समायोजन स्तर में सार्थक अंतर होता है |
Keywords किशोरावस्था, समायोजन, पारिवारिक वातावरण |
Field Sociology > Philosophy / Psychology / Religion
Published In Volume 5, Issue 3, May-June 2023
Published On 2023-05-04
Cite This Parivarik Vatavaran Ke Sambandh Me Mahila Kishoron Ke Samayojan Ka Tulnatmak Addhyyan - Kiran karnatak, Deepa Pandey - IJFMR Volume 5, Issue 3, May-June 2023. DOI 10.36948/ijfmr.2023.v05i03.2774
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i03.2774
Short DOI https://doi.org/gr7hdv

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