International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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दक्षिण राजस्थान के 'वनवासी' भील जनजाति का जीवन (उदयपुर शहर के विशेष सन्दर्भ में)

Author(s) हेमलता गमेती
Country India
Abstract जनजातियाँ भारत की बहुत ही प्राचीन प्रजातीय समूह है, इनका लगाव प्रकृति के साथ घनिष्ट रूप से जुड़ा होता है। जनजातियों में परम्परागत सम्पूर्ण सांस्कृतिक झलक दिखाई देती है। इनके सांस्कृतिक जीवन का वास्तव में अत्यधिक महत्व भी होता है, क्योंकि इसमें सभ्य समाज के सांस्कृतिक जीवन का आदि स्वरूप दिखाई देता है। इनका जीवन सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से भरपूर होता है। जीवन के विभिन्न पक्षों तथा समस्याओं से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं पर इनका अटुट विश्वास होता है। जनजातीय समाज परम्परावादी, रूढ़ीवादी व अन्धविश्वासों से घिरा हुआ है। बहुत व्यस्त होते हुए भी अपनी आदिम संस्कृति के प्रति लगाव को बनाये रखा है। इनका अधिकांश समय पशुपालन और कृषि कार्यों में गुजरता है। वर्तमान में कुछ युवा नौकरी मे जैसे शिक्षक, नर्स, डॉक्टर, इंजनियरिंग में अपना जीवन आजमा रहा है, जनजातियों मे बदलाव का प्रत्यक्ष उदारहण भारत की 15वीं और वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के रूप में देख सकते है। इनकी जीवन पद्धति में भी बदलाव हो रहा है। स्वभाव स्वरूप यह बहुत शर्मीले साधारण एवं अपनी बात कहने में हिचकिचाहट रखते है, कुछ गरीबी के कारण मटमेले भी रहते और दिखते है। महिलाओ को घर के काम के साथ-साथ में आय के लिए कार्य भी करने पड़ते है। एवं बच्चो को भी संभालना होता हैं। जनजातियों की प्रमुख संस्थाएँ जिसमे विवाह, परिवार, गोत्र समूह, टोटम समूह, नातेदारी सम्बन्ध की प्रधानता रहती है। यह धर्म और जादु के प्रति विश्वास रखते है। जनजातीय समाज में त्योहार उत्सव आदि बहुत हर्ष और उल्लास के साथ मनाते है। जनजातियों में सामाजिक संस्तरण भी पाया जाता है। इन समाजो में पितृसतात्मक या पितृवंशीय परिवारों का संगठन होता है। इस समाज में जीवन साथी चुनने के कई तरीके प्रचलित है।
Keywords जनजाति, सामाजिक जीवन, आर्थिक जीवन, संस्कार, धर्म, संस्कृति
Field Sociology
Published In Volume 6, Issue 5, September-October 2024
Published On 2024-10-29
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i05.29588
Short DOI https://doi.org/g8p2tx

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