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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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तिलक के स्वराज की अवधारणा और आधुनिक राजनीतिक परिदृश्य में इसकी प्रासंगिकता का विश्लेषण

Author(s) Vineeta Pathak, Asheesh Kumar Mishra
Country India
Abstract बाल गंगाधर तिलक की स्वराज की अवधारणा भारत के स्वतंत्रता संग्राम की आधारशिला थी और व्यापक रूप से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के साथ गहराई से जुड़ी हुई थी| तिलक ने स्वराज को केवल राजनीतिक स्वतंत्रता के रूप में नहीं बल्कि भारतीय मूल्य संस्कृतिऔर परंपराओं में निहित स्वशासन के रूप में परिभाषित किया| उनका मानना था कि सच्ची स्वतंत्रता में आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक स्वायत्त सम्मिलित है, जो की जमीनी स्तर पर सशक्तिकरण की आवश्यकता पर बलदेती है| तिलक की दृष्टि जनता की सक्रिय भागीदारी की वकालत करतीथी, जिसका लक्ष्य शासन की विकेंद्रीकृत प्रणाली बनाना था| आधुनिक राजनीतिक परिदृश्यमें तिलक के स्वराज का विचार अत्यधिक प्रासंगिक बना हुआहै,विशेष रूप से विकेंद्रीकरण की मांग और स्थानीय शासन के लिए के संदर्भ में|वर्तमान में दुनिया भर मेंलोकतांत्रिकव्यवस्थाएं सत्ता के केंद्रीकरण और नागरिकों के बीच मोहभंग से जूझ रही है| तिलक की अवधारणा स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देने और जवाबदेहीको बढ़ावा देने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है| इसके अतिरिक्त स्वराज में निहित आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक गौरव के सिद्धांत समकालीन आंदोलन से मेल खाते हैं, जो की स्वदेशी अधिकारों, सतत विकास, पर्यावरणीय मूल्य व सांस्कृतिक संरक्षण पर जोर देते हैं| इस प्रकार यहशोध पत्र तिलक के विचारों पर दोबारा गौर करने से शासन,सांस्कृतिकपहचान,विकेंद्रीकरण व पर्यावरण समस्याओं से संबंधित आधुनिक चुनौतियों का समाधान करने में अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा|
Keywords स्वराज, स्वतंत्रता, सशक्तिकरण, भारतीय राष्ट्रवाद, विकेंद्रीकरण, नागरिक भागीदारी, आत्मनिर्भरता
Field Sociology > Politics
Published In Volume 6, Issue 6, November-December 2024
Published On 2024-11-16
Cite This तिलक के स्वराज की अवधारणा और आधुनिक राजनीतिक परिदृश्य में इसकी प्रासंगिकता का विश्लेषण - Vineeta Pathak, Asheesh Kumar Mishra - IJFMR Volume 6, Issue 6, November-December 2024. DOI 10.36948/ijfmr.2024.v06i06.30626
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i06.30626
Short DOI https://doi.org/g8rd24

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