International Journal For Multidisciplinary Research
E-ISSN: 2582-2160
•
Impact Factor: 9.24
A Widely Indexed Open Access Peer Reviewed Multidisciplinary Bi-monthly Scholarly International Journal
Home
Research Paper
Submit Research Paper
Publication Guidelines
Publication Charges
Upload Documents
Track Status / Pay Fees / Download Publication Certi.
Editors & Reviewers
View All
Join as a Reviewer
Reviewer Referral Program
Get Membership Certificate
Current Issue
Publication Archive
Conference
Publishing Conf. with IJFMR
Upcoming Conference(s) ↓
WSMCDD-2025
GSMCDD-2025
Conferences Published ↓
RBS:RH-COVID-19 (2023)
ICMRS'23
PIPRDA-2023
Contact Us
Plagiarism is checked by the leading plagiarism checker
Call for Paper
Volume 6 Issue 6
November-December 2024
Indexing Partners
कौटिल्य का अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में योगदान।
Author(s) | Rohit Singh |
---|---|
Country | India |
Abstract | "प्रजा सुखे सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम्। नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियम् हितम्।।" कौटिल्य के अंतरराष्ट्रीय राजनीति का विश्लेषण यथार्थवादी है, जिसका मूल अभिप्राय है कि प्रत्येक राज्य ज्यादा से ज्यादा शक्ति अर्जित करना चाहता है जिससे उसकी सुरक्षा बेहतर बनी रहे। कौटिल्य के चिंतन में राज्य ही मूल इकाईयां हैं और राज्य के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय संगठन नहीं है। इसी विचार को वर्तमान यथार्थवादी विचारक केनेथ वॉल्ट्ज ने निर्मित किया है जिनके विचार को नव यथार्थवादी अथवा संरचनात्मक यथार्थवादी कहा जाता है,जिसका तात्पर्य है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति की संरचना अराजकतापूर्ण है। इसलिए राज्यों की सुरक्षा के लिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा शक्ति अर्जित करना पड़ता है। कौटिल्य ने मण्डल सिद्धान्त के तहत विदेश नीति की चर्चा की और बताया कि पड़ोसी स्वाभाविक शत्रु होता है। इस तरह कौटिल्य यथार्थवादी विचारक की कोटि में आता है।इसे भारत का मैकियावेली कहा गया। उल्लेखनीय है कि कौटिल्य के चिंतन में राज्य अथवा राजा का महत्व सर्वाधिक है और राजा धर्म से बंधा हुआ नहीं है, लेकिन आम व्यक्तियों के लिए धर्मानुकूल आचरण करना आवश्यक है, इसलिए कौटिल्य का विचार पंथनिरपेक्ष चिंतन भी माना जाता है जहाँ धर्म और राजनीति के बीच अलगाव किया गया है। कौटिल्य ने यह भी विस्तृत रूप में उल्लिखित किया कि एक राजा को दूसरे राजा के साथ किस प्रकार सम्बंध का निर्माण करना चाहिए। इसके अंतर्गत 6 नीतियाँ आती हैं- संधि, विग्रह, आसन, आश्रय, द्वैधी भाव, यान । राज्यों के समूह को ही कौटिल्य ने मण्डल के रूप में चित्रित किया। कौटिल्य के बृहद मण्डल में 12 राज्य विद्यमान हैं। मण्डल के केंद्र में विजीगीषु(विजय की इच्छा रखने वाला राज्य)राज्य होता है तथा इसके पड़ोस के राज्य को अरि(शत्रु)तथा अरि के बगल में मित्र राज्य होता है। मण्डल में सबसे शक्तिशाली राज्य उदासीन होता है। कौटिल्य के 'मंडल सिद्धांत' में 'विजिगीषु' या केंद्रीय राज्य की अवधारणा का विश्लेषण करते हुए और विदेशी संबंधों में मित्र और शत्रु राज्यों की विस्तृत चर्चा की है। लेख से यह समझने में मदद मिलेगी कि भारत की विदेश नीति के विकल्पों में शास्त्रीय शास्त्र अभी भी कैसे प्रासंगिक है। निश्चित रूप से कौटिल्य के अर्थशास्त्र ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में निर्णय लेने को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है। |
Keywords | यथार्थवादी, अर्थशास्त्र, विदेश नीति, कूटनीति, विजिगीषु, मंडल सिद्धांत, सप्तांग सिद्धांत। |
Field | Sociology > Politics |
Published In | Volume 6, Issue 6, November-December 2024 |
Published On | 2024-11-22 |
Cite This | कौटिल्य का अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में योगदान। - Rohit Singh - IJFMR Volume 6, Issue 6, November-December 2024. DOI 10.36948/ijfmr.2024.v06i06.31238 |
DOI | https://doi.org/10.36948/ijfmr.2024.v06i06.31238 |
Short DOI | https://doi.org/ |
Share this
E-ISSN 2582-2160
doi
CrossRef DOI is assigned to each research paper published in our journal.
IJFMR DOI prefix is
10.36948/ijfmr
Downloads
All research papers published on this website are licensed under Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 International License, and all rights belong to their respective authors/researchers.