International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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निराला की काव्य भूमि और उसका रचनात्मक विस्तार

Author(s) DEEPAK SINGH
Country India
Abstract निराला को किसी एक खांचने में बांधना बहुत मुश्किल है चाहे वह छायावाद का हो, प्रगति-प्रयोग का, या समकालीन कविता का | उनकी कविता में व्यापक मुक्ति की चेतना है | यह मुक्ति एकरेखीय न होकर बहुआयामी है | विदेशी पराधीनता से मुक्ति के साथ-साथ यह समाज की उन रूढ़ियों-परम्पराओं से मुक्ति है जिसने मानव जीवन को जड़ बना रखा है | स्त्री, किसान दलित, मजदूर सभी इस दायरे में शामिल हैं | निराला की रचना प्रक्रिया बहुआयामी है जिसका विस्तार वर्तमान कविता तक होता चला आ रहा है | ‘रचना प्रक्रिया का विस्तार’ पद किंचित अजीब लग सकता है लेकिन शमशेर बहादुर सिंह जैसा कवियों का कवि इसकी गवाही दे गया है | निराला ने जीवन और रचना कर्म का अद्वैत निर्मित किया, जिसने उन्हें मर्म भेदक दृष्टि प्रदान की | इसीलिए हर राह भटका लौट-लौट कर उन तक जाता है बस शर्त यह है कि वह शमशेर की तरह सच्चा हो |
Keywords छायावाद, मुक्तिकामी चेतना, सुर्जकुमार, जीवन-संघर्ष, रचना-प्रक्रिया, साहित्य साधना, रचनात्मक वैविध्य, जीवन और मृत्यु, संवेदना, संशय
Field Arts
Published In Volume 4, Issue 4, July-August 2022
Published On 2022-07-06

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