
International Journal For Multidisciplinary Research
E-ISSN: 2582-2160
•
Impact Factor: 9.24
A Widely Indexed Open Access Peer Reviewed Multidisciplinary Bi-monthly Scholarly International Journal
Home
Research Paper
Submit Research Paper
Publication Guidelines
Publication Charges
Upload Documents
Track Status / Pay Fees / Download Publication Certi.
Editors & Reviewers
View All
Join as a Reviewer
Reviewer Referral Program
Get Membership Certificate
Current Issue
Publication Archive
Conference
Publishing Conf. with IJFMR
Upcoming Conference(s) ↓
WSMCDD-2025
GSMCDD-2025
Conferences Published ↓
RBS:RH-COVID-19 (2023)
ICMRS'23
PIPRDA-2023
Contact Us
Plagiarism is checked by the leading plagiarism checker
Call for Paper
Volume 7 Issue 1
January-February 2025
Indexing Partners



















आदिवासी वैचारिकी और साहित्य में अभिव्यक्त चेतना के विविध आयाम
Author(s) | Mr.Shantaram Shelya Valvi |
---|---|
Country | India |
Abstract | शोध सारांश (Abstract) - आदिवासी साहित्य का मूल स्वर जल-जंगल-जमीन है l यूरोप से पूरे विश्व में फैले औद्योगिक क्रांति के पश्चात विकास की नई परिकल्पनाओं ने जन्म लिया l यहीं से प्राकृतिक संसाधनों के अत्याधिक दोहन का सिलसिला शुरू हुआ l भौतिक सुविधा के संसाधनों ने मानवीय जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया l वहीं दूसरी ओर वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण मनुष्य जीवन अधिकाधिक सुखकर होता गया l किंतु जो समुदाय पूरी तरह से जंगलों-पहाड़ो पर निर्भर था, उसका भारी नुकसान हुआ l प्राकृतिक संसाधनों के अत्याधिक दोहन से यह इस समुदाय के जीवन-यापन के सभी साधन लूट लिए गएँ l परिणामत हजारों-लाखों वर्षों से प्रकृति के साथ विलक्षण सामंजस्य बिठाकर अपनी संस्कृति और जीवन दर्शन निर्माण करनेवाला एक बहुत बड़ा समुदाय अपने अस्तित्व से झूँझ रहा है l भूमंडलीकरण ने आदिवासी समुदाय का अत्याधिक नुकसान किया है l आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता, चिंतक, रचनाकार इन तमाम सवालों को व्यवस्था के सामने बड़ी विनम्रता से पूछ रहे हैं l भारत में लगभग सभी क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय रहता है l इनका भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधाओं के साथ ही संघर्ष का गौरवशाली इतिहास भी है l किंतु विकास के नाम पर लाखों वर्षों से जीवन यापन करने वाले आदिवासियों के हिस्से विस्थापन का बहुत बड़ा संकट आ खड़ा हुआ है l अपनी जमीन से उखाड़े जाने के पश्चात वे कहीं के नहीं रहते l डॉ.खान्नाप्रसाद अमीन ‘आदिवासी की मौत’ कविता में यही भाव व्यक्त करते हुए लिखते हैं, “आदिवासी की मौत / उस दिन होती है / जब नष्ट होता है / जल, जंगल, जमीन / और उनकी सभ्यता एवं संस्कृति / जहाँ सवार होता है कोई / हरामखोर, पूँजीवादी, जमींदार / सदैव उनका शोषण करने वाला l”1 आज आदिवासी समुदाय अपने अस्तित्व के लिए झगड़ रहा है l आदिवासी साहित्य प्रकृति के साथ अद्भत जुड़ाव से विकसित हुआ है l आदिवासी रचनाकारों की प्रेरणा ही प्रकृति और संस्कृति रही है l अपने पुरखों द्वारा विकसित जीवन दर्शन केंद्र में रहा है l आदिवासी साहित्य के मानदंडों पर ‘राँची घोषणापत्र’2 अधिक विस्तार से विवेचन करता है l हम कह सकते हैं कि आदिवासी साहित्य की वैचारिकी और उसमें निहित चेतनात्मक भावों को निष्पक्ष होकर देखने की आवश्यकता है l प्रतिक्रियावादी साहित्य मानने की अपेक्षा उनके अधिष्ठान को देखने की जरुरत है l तभी हम सही अर्थ में आदिवासी साहित्य के साथ न्याय कर पाएँगे l मूलतः आदिवासी साहित्य चेतना जागृत करनेवाला साहित्य है, शोषण, अन्याय के खिलाफ़ संघर्ष की प्रेरणा देनेवाला साहित्य है l अपनी अस्मिता को बनाएँ रखने की कोशिश करता ही l अर्थात “चेतना आदिवासी साहित्य का साधन है और अस्मिता की माँग और उपलब्धि उसका साध्य l”3 |
Keywords | कुंजी शब्द (Key Words) – चेतना, विमर्श, मौखिक-लिखित साहित्य, आदिवासी बोली-भाषाएँ, प्रथाएँ, संस्कृति, अस्मिता, जल-जंगल-जमीन, बड़े बाँध, रास्ते, खनन, सरकारी एवं निजी कंपनियों की विकास परियोजनाएँ, विस्थापन, गरीबी, संविधान, आरक्षण, शिक्षा, राजनीति, समाज का नेतृत्व l |
Field | Arts |
Published In | Volume 7, Issue 1, January-February 2025 |
Published On | 2025-01-16 |
Cite This | आदिवासी वैचारिकी और साहित्य में अभिव्यक्त चेतना के विविध आयाम - Mr.Shantaram Shelya Valvi - IJFMR Volume 7, Issue 1, January-February 2025. DOI 10.36948/ijfmr.2025.v07i01.34925 |
DOI | https://doi.org/10.36948/ijfmr.2025.v07i01.34925 |
Short DOI | https://doi.org/g82gt9 |
Share this

E-ISSN 2582-2160

CrossRef DOI is assigned to each research paper published in our journal.
IJFMR DOI prefix is
10.36948/ijfmr
Downloads
All research papers published on this website are licensed under Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 International License, and all rights belong to their respective authors/researchers.
