International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

A Widely Indexed Open Access Peer Reviewed Multidisciplinary Bi-monthly Scholarly International Journal

Call for Paper Volume 7, Issue 2 (March-April 2025) Submit your research before last 3 days of April to publish your research paper in the issue of March-April.

बंजारा एक यायावर समुदाय

Author(s) डॉ. पोरिका नागमणी
Country India
Abstract बंजारा जिनका कोई ठौर-ठिकाना न था, न घर और न ही किसी स्थान से लगाव । यायावरों सा जीवन बिताते हुए आज यहां ठहर गए, कल का पता नहीं । कि पूरा कुनबा कहां पड़ाव डाले । यह सदियों से हिमालय से समुद्र तट-तक निर्भयतापूर्वक यात्रा करता रहा। उत्तर में हिमालय भी उसका सीमा निर्धारण नहीं कर सका। वह एशिया और यूरोप के देशों में पहुंचा और वहां भी यायावर बना रहा। नाचने के लिए पावों में घुंघरू बांधे बंजारा युवती किसी पेड़ के पास से गुजरती है तो दूर बैठे व्यक्ति को अनुभव होता है कि वृक्ष नाचने लगा है। अगर बंजारिनझोपड़ी में काम करती है तो छप्पर भी झनझना कर थिरकने लगता है। लेकिन आज स्थितियां बदल गई हैं। मकान बनने का काम चल रहा हो या सड़क बन रही हो, बंजारे पूरे क्षेत्र में मजदूरी करते देखे जा सकते हैं। आज के इस तथाकथित विकासवाद ने अपने समय के धनी इस समुदाय को एकाएक सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है। एक समय था जब बंजारे देश के अधिकांश हिस्सों में परिवहन, वितरण, वाणिज्य, पशुपालन और दस्तकारी से जुड़कर अपना जीवन बिताते थे। आपूर्ति के लिए जहां इनका रजवाड़ों में महत्वपूर्ण स्थान था, वहीं अकाल के बुरे दिनों में इनके मार्ग में पड़ने वाले गावों का हर व्यक्ति उत्सुकता से प्रतीक्षा करता था। भारत के मार्ग परिवहन तथा वाणिज्य का इतिहास बंजारों के प्रयासों का उल्लेख किए बिना नहीं लिखा जा सकता। जब इंटरनेट नहीं था तो बंजारा जाति ही गूगल मैप का काम करती थी।
Published In Volume 1, Issue 3, November-December 2019
Published On 2019-12-24

Share this