International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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रवीन्द्र कालिया की कहानियों में सामाजिक विडंबना

Author(s) डॉ. पोरिका नागमणी
Country India
Abstract व्यक्ति समाज की इकाई है। व्यक्ति के अभाव में समाज की स्थापना या कल्पना करना अत्यन्त असम्भव कार्य है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना व्यवहार व विचार होते है यही व्यवहार और विचार मानव को मानव से भिन्न करता है। व्यक्तियों के व्यवहार आदान-प्रदान से ही समाज निर्मित होता है अर्थात समाज व्यक्तिगत समूह है। रवीन्द्र कलिया वस्तुतः अकहानी आन्दोलन से जुड़े एक सवक्त कहानीकार है। रवीन्द्र कालिया ने खुद को ऐसे समाज में पाया जहाँ का वातावरण मुख्यतः सामाजिक परिवर्तन, आर्थिक परिवर्तन, राजनीतिक एवं मानव के व्यवहार तक में बदलाव की सीमा पार कर चुकी है जिसे हम इन स्थितियों को सामाजिक विडंबना कहकर परिभाषित कर सकते है आजादी के बाद देष में आधुनिकीकरण के तहत शहरीकरण और यंत्रीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई। बड़े शहरो के विकाष में उन्हें अपना कार्य चुनना पड़ा रवीन्द्र कालिया की कहानियाँ महानगर की वास्तविकता से जुड़ी है। किस तरह व्यक्ति गाँव से शहर की और पलायन करते है और उन्हें किस-किस तरह की यहाँ समस्याओ का सामना करना पड़ता है यही सामाजिक विडंबना है।
Keywords -
Published In Volume 4, Issue 2, March-April 2022
Published On 2022-04-21
Cite This रवीन्द्र कालिया की कहानियों में सामाजिक विडंबना - डॉ. पोरिका नागमणी - IJFMR Volume 4, Issue 2, March-April 2022.

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