International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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बारेला जनजाति के परम्परागत महिला परिधान अधिवस्त्र, अधोवस्त्र एवं उत्तरीय का विश्लेष्णात्मक अध्ययन

Author(s) Dr. Neerja Gupta
Country India
Abstract वेश-भूषा का अर्थ है शरीर पर धारण की गई वह वस्तु जिससे शरीर का रूप परिवर्तित हो जाता है। वेश-भूषा में कपड़े तथा श्रृंगार दोनों आते हैं। श्रृंगार करने का चलन भारत में आदिकाल से चला जा रहा है । पौराणिक एवं वैदिक ग्रंथों में सोलह श्रृंगार का वर्णन मिलता है। उनमें उन पदार्थों के बारे में भी जानकारी मिलती है जिनसे श्रृंगार करने की वस्तुएँ बनाई जाती थीं। पहले यह माना जाता था कि भारत में सिले हुए कपड़ों की शुरूआत सोलहवीं शताब्दी में हुई। लेकिन अब इस बात का पता लगाया जा चुका है "वैदिक युग से सातवीं शताब्दी तक सिले हुए कपड़ों का विवरण तत्कालीन साहित्य में लिखा हुआ है। वैदिक, बौद्ध तथा जैन साहित्य, कोशों तथा आख्यायिकाओं में उस समय पहने जाने वाले वस्त्रों के नाम मिलते हैं। व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने अर्थात् अच्छा दिखने में वेश-भूषा का विशेष महत्व रहता है। हर व्यक्ति अच्छे तथा विशिष्ट कपड़े पहनना चाहता है। प्रत्येक समाज, क्षेत्र तथा जाति की अपनी अलग-अलग वेश-भूषा संबंधी विशेषता होती है। यही विशेषता और विविधता व्यक्ति को उसके समुदाय का प्रतिनिधि बनाती है। जैसे - यदि हम कहीं भी कपड़े के मोटे रस्से जैसी कई घुमावों वाली बड़ी-सी पगड़ी बाँधे और धोती के साथ डोरियों वाला कुर्त्ता पहने किसी आदमी को देखते हैं तो तत्काल समझ जाते हैं कि यह किस वर्ग का व्यक्ति है। वेश-भूषा से सुगमता से पहचाना जा सकता है कि कौन-सा आदिवासी व्यक्ति किस जनजाति का है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वेश-भूषा के द्वारा जनजातीय विशेषताओं का भी अनुमान लगाया जा सकता है। वेश-भूषा आर्थिक स्थितियों एवं जीवन की दशाओं के बारे में भी बताती है। मध्यप्रदेश के आदिवासियों में वेश-भूषा की कुछ समानताएँ पाई जाती हैं तो पर्याप्त विविधता भी पाई जाती है । वस्त्रों को पहनने का ढंग, वस्त्रों के रंग तथा वस्त्रों के प्रकार की भिन्नता सभी जनजातियों को एक-दूसरे से अलग पहचान देती है ।
Keywords परिधान, आकर्षक, अधिवस्त्र, अधोवस्त्र, उत्तरीय, जनजाति, मध्य प्रदेश
Field Arts > Fashion
Published In Volume 5, Issue 4, July-August 2023
Published On 2023-07-20
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i04.4523
Short DOI https://doi.org/gshm7g

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