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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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जयपुर चित्रकला शैली का वर्तमान भारतीय समाज पर प्रभाव का अध्ययन

Author(s) DURGESH KUMAR
Country India
Abstract भारतीय इतिहास में राजस्थान का अपना एक अलग स्थान है। कई छोटे-छोटे राज्यों के सम्मिलित भूखण्ड को पहले राजपूताना कहा जाता था यह नाम कर्नल जेम्स टॉड ने दिया था। राजस्थान अपने शौर्य एवं स्वाभिमान तथा स्वतन्त्रता प्रेम के लिए प्रसिद्ध रहा हैं। यहाँ शौर्यता के साथ-साथ कला को भी प्रोत्साहन मिला है। राजस्थान की चित्रकला अपने आप में अदभूत रही है।
राजस्थानी चित्रकला का विभाजन एवं वर्गीकरण राजस्थानी चित्रकला का विकास एवं निर्माण विभिन्न कलाकारों के सहयोग से हुआ है। राजस्थान में चित्रकला का विकास एवं विस्तार प्राचीन नगर, राजधनियों तथा धर्मिक स्थलों पर हुआ है। राजस्थानी चित्रकला का जन्म र्ध्मपीठों, लोक कलात्मक मिथकों, रिसासतों के कला प्रेमी राजाओं सामंतों, जागीदारों, नगर प्रमुखों एवं कलाकारों के योगदान से हुआ।8 इसी कारण कलाकारों ने परंपरागत शैलीयों के चित्रा बनाए उन्हीं के आधर पर राजस्थानी चित्रकला का वर्गीकरण इस प्रकार है।9

राजस्थानी चित्रशैली भित्ति चित्रों, संग्रहालयों विभिन्न कार्यालयों में बड़े स्तर पर विद्यमान है। जो परम्परा के रूप में प्रागेतिहासिक काल से अब तक स्पष्ट अदृश्य रूप में मौजूद रही है। के. पी. जायसवाल ने राजपूताना की चित्रकला का जन्म ग्याहरवीं शताब्दी में बने उदयादित्य द्वारा एलोरा में बनाए गए चित्रों से माना है। आठवी शताब्दी से पूर्व ही राजपूताना में चित्राकला की अपनी निजि समृद्ध परम्परा रही थी। अजन्ता शैली से प्रभावित गुर्जर-प्रतिहार काल के समय से ही राजपूताना में कला का नया रूप विकसित हुआ जिसे अपभ्रंश शैली कहा गया। अपभ्रंश शैली, जैन शैली तथा पश्चिमी भारतीय शैली के रूप में पद परिवर्तन के साथ राजपूताना चित्रशैली की और प्रविष्ट होती हुई राजस्थानी शैली के रूप में 16वीं सदी में मौलिकता ग्रहण की हालांकि इसका मूल स्त्रोत अपभ्रंश शैली ही था। आनन्द कुमार स्वामी ने राजस्थानी चित्रकला को राजपूत शैली एव पहाड़ी शैलीयों के रूप में मान्यता दी है।
Field Arts
Published In Volume 5, Issue 4, July-August 2023
Published On 2023-08-18
Cite This जयपुर चित्रकला शैली का वर्तमान भारतीय समाज पर प्रभाव का अध्ययन - DURGESH KUMAR - IJFMR Volume 5, Issue 4, July-August 2023.

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