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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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जनजातीय महिलाओं के सहभागिता के बिना राष्ट्र निर्माण की अवधारणा अधूरी: एक अवधारणात्मक विश्लेषण। (झारखण्ड राज्य के विशेष सन्दर्भ में)

Author(s) डॉ. सुबोध प्रसाद रजक
Country India
Abstract विविधता में एकता, सामाजिक-सांस्कृतिक सहिष्णुता, धार्मिक सद्भाव एवं भाषायी बंधुता की भावना राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया को सशक्त, सफल एवं सार्थक बनाती है। भारत की भौगौलिक विविधताओं, भाषायी एवं सास्कृतिक बहुलताओं को संपूर्ण सम्मान एवं राष्ट्रीय स्वीकार्यता के साथ एकता में सूत्रों में पिरोने का कार्य राष्ट्र निर्माण की प्रगतिशील एवं समावेशी प्रक्रिया करती है। राष्ट्र की आधी आबादी अर्थात नारियों के सहभागिता के बिना राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया भी अधूरी ही रहेगी। इस आधी आबादी का एक अहम् हिस्सा आदिवासी जनजातीय महिलाओं का है। आदिवासी जनजातीय महिलायें जिन्होंने आदिकाल से नारी सशक्तिकरण की दिशा में, स्वच्छ, स्वस्थ, सुन्दर व प्रकृति प्रेमी मानव समाज के निर्माण में, अन्यायी अत्याचारी व शोषणकारी अंग्रेजी सत्ता के विरूद्ध हुए आन्दोलनों में सक्रिय एवं प्रभावशाली भूमिका निभाई है।
राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया बहुआयामी प्रकृति की होती है, जिसके राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, साहित्यिक व पर्यावरणीय आदि आयाम होते हैं। झारखण्ड के आदिवासी जनजातीय महिलाओं ने 1855 के संताल विद्रोह, 1900 के बिरसा आन्दोलन में सशस्त्र संघर्ष करके एवं 1914-15 के तानाभगत आन्दोलन में अहिंसक व शांतिपूर्ण प्रतिरोध में अपनी सशक्त व प्रभावी उपस्थिति दर्ज कर राष्ट्र-निर्माण की वैचारिकी के साथ-साथ उसके व्यवहारिक अमलीकरण को सार्थक एवं संभव बनाया।
आर्थिक लहजे में आत्मनिर्भरता की संकल्पना को एवं देशज उत्पाद उपयोग करने की अवधारणा को आदिवासी जनजातीय महिलाओं के घरेलु आर्थिकी एवं जीवन प्रणाली ने सार्थक किया है। जनजातीय महिलाओं के प्रकृति प्रेमी एवं प्राकृतिक अलंकरण की परिपाटी ने राष्ट्र-निर्माण के पर्यावरणीय पक्ष को मजबूती दी है। उनके जीवन की सरलता, सहजता एवं सहयोग की भावना ने राष्ट्र निर्माण के विश्व बंधुत्व की परम्परा को बढ़ावा दिया है। साहित्यिक दृष्टिकोण से आज आदिवासी-विमर्श भी आदिवासी जनजातीय महिलाओं के समस्याओं एवं संवेदनाओं को मुख्यधारा के साहित्य से जोड़कर राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को गति प्रदान कर रही है। प्रस्तुत शोध पर हम बेहद बारीकी से राष्ट्र निर्माण के विविध आयामों को झारखण्ड के आदिवासी जनजातीय महिलाओं के विविध पक्षों के संर्दभो में समझने का प्रयास करेंगे एवं साथ ही राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया के विभिन्न आयामों को सशक्त एवं सफल करने की दिशा में जनजातीय महिलाओं की भूमिकाओं को भी रेखांकित करेंगे।
Keywords राष्ट्र-निर्माण, जनजातीय, महिला, सशक्तीकरण, आदिवासी- विमर्श, प्रकृति प्रेमी।
Published In Volume 5, Issue 5, September-October 2023
Published On 2023-09-05
Cite This जनजातीय महिलाओं के सहभागिता के बिना राष्ट्र निर्माण की अवधारणा अधूरी: एक अवधारणात्मक विश्लेषण। (झारखण्ड राज्य के विशेष सन्दर्भ में) - डॉ. सुबोध प्रसाद रजक - IJFMR Volume 5, Issue 5, September-October 2023. DOI 10.36948/ijfmr.2023.v05i05.6193
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i05.6193
Short DOI https://doi.org/gsn74p

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