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E-ISSN: 2582-2160
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Volume 6 Issue 6
November-December 2024
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योग के अंगों की वैश्विक स्तर पर उपयोगिता – एक अनुशीलन
Author(s) | SATYAWATI, SATYAWAN ARYA |
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Country | India |
Abstract | योग और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं। योग, अध्यात्म और विज्ञान में समन्वय के बिना पर्यावरण को हानि पहुंचाकर ,शारीरिक श्रम की उपेक्षा कर ,यंत्रवत् भौतिक सुविधाओं का दास बनकर, भविष्य के परिणामों पर विचार न करते हुए, केवल बौद्धिक बल पर की गई एकांगी उन्नति के कारण करोना जैसी महामारी के दंश को समस्त विश्व ने झेला है! जब लाशों के अंबार लग गए तथा व्यक्ति शुद्ध हवा में सांस लेने को तरस गए । लुभावनी भौतिक चकाचौंध ने शास्त्र की उक्ति "शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम् "अर्थात् किसी भी श्रेष्ठ कार्य को करने का प्रथम साधन शरीर है । यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि शरीर की उपेक्षा कर धन अर्जित किया जा सकता है परंतु धन लगाकर पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त नहीं किया जा सकता! युज् धातु से निष्पन्न योग शब्द का अर्थ है जुड़ना या मिलना । योग शरीर और मन को स्वस्थ रखने की एक आध्यात्मिक प्रक्रिया तथा जीवन जीने की स्वस्थ पद्धति है । महर्षि पतंजलि द्वारा प्रदत योग के आठ अंग समस्त मानव जाति के लिए एक अनमोल उपहार हैं। योग दर्शन के अनुसार "योगश्चित्तवृत्ति निरोध :"1 अर्थात् चित्त की समस्त वृत्तियों का निरोध ही योग है ,दूसरे शब्दों में कहें तो मन एवं इंद्रियों का संयम ही योग है । यम शब्द यद्यपि शास्त्रीय पारिभाषिक शब्द है व्याकरण के अनुसार ' यमु उपरमे' धातु से यह शब्द बनता है जिसका अर्थ है अपनी चित्तवृत्तियों को बाह्य विषयों से रोक कर नियन्त्रित करना। इन आठ अंगों में प्रथम यम तथा नियम जीवन में आत्मसात करने पर सभी प्राणी सुखी तथा अनुशासित हो सकते हैं। " अभ्यास और वैराग्य से ही वृत्तियों पर पूर्ण नियन्त्रण किया जा सकता है |
Keywords | योगश्चित्तवृत्ति निरोध, अभ्यास और वैराग्य, अहिंसा सत्याऽस्तेय ब्रह्मचर्याऽपरिग्रहा यमा |
Field | Arts |
Published In | Volume 5, Issue 1, January-February 2023 |
Published On | 2023-01-25 |
Cite This | योग के अंगों की वैश्विक स्तर पर उपयोगिता – एक अनुशीलन - SATYAWATI, SATYAWAN ARYA - IJFMR Volume 5, Issue 1, January-February 2023. |
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E-ISSN 2582-2160
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10.36948/ijfmr
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