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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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प्रगतिवादी काव्यधारा-प्रेरणा स्त्रोत और मुख्य प्रवृतियाँ

Author(s) Umashankar Ray
Country India
Abstract ‘प्रगति’ का सामान्य अर्थ है- ‘आगे बढ़ना और ‘वाद’ का अर्थ है- सिद्धान्त। इस प्रकार प्रगतिवाद का सामान्य अर्थ है ‘आगे बढ़ने का सिद्धांत ।’ लेकिन प्रगतिवाद में इस ‘आगे बढ़ने का एक विशेष ढ़ंग है, विशेष दिशा है जो उसे विशिष्ट परिभाषा देता है। इस अर्थ में ‘प्राचीन से नवीन की ओर ‘आदर्श से यथार्थ की ओर’ , ‘पूँजीवाद से समाजवाद की ओर, ‘रूढ़ियों से स्वच्छंद जीवन की ओर ‘उच्चवर्ग से निम्नवर्ग की ओर तथा ‘शांति से क्रांति की ओर बढ़ना हीं प्रगतिवाद है।
परंतु हिन्दी साहित्य में प्रगतिवाद एक विशेष अर्थ में रूढ़ हो चुका है। जिसके अनुसार प्रगतिवाद को मार्क्सवाद का साहित्यक रूप कहा जाता है। जो विचारधारा राजनीतिक क्षेत्र में साम्यवाद या मार्क्सवाद कहलाती है, वही साहित्यिक क्षेत्र में प्रगतिवाद के नाम से जानी जाती है। इसी प्रगतिवाद को ‘समाजवादी यथार्थवाद (सोशलिस्ट रियलिज्म) भी कहते है।’
Keywords परिस्थितिप्रसूत , प्रयोगधर्मिता , यर्थाथवादी , सौंदर्याभिव्यक्ति , प्रतिक्रियावादी , अट्टालिका , समाजवादी यथार्थवाद आदि।
Published In Volume 5, Issue 5, September-October 2023
Published On 2023-10-27
Cite This प्रगतिवादी काव्यधारा-प्रेरणा स्त्रोत और मुख्य प्रवृतियाँ - Umashankar Ray - IJFMR Volume 5, Issue 5, September-October 2023. DOI 10.36948/ijfmr.2023.v05i05.8006
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i05.8006
Short DOI https://doi.org/gszvfn

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