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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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सूरदास का वात्सल्य वर्णन

Author(s) Umashankar Ray
Country India
Abstract हिन्दी साहित्य में वात्सल्य रस का सजीव, सरस और आकर्षक वर्णन करने वाला भारत हीं नही, सम्पूर्ण विश्व में कोई प्रख्यात कवि हुआ है तो वह ‘सूरदास‘ हीं है। सूरदास का जन्म दिल्ली के निकट ब्रज की ओर स्थित सीही नामक गाँव में सन् 1478 ई0 में हुआ था। सूरदास हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल के सगुण धारा के कृष्ण-भक्ति उपशाखा के महान् कवि हैं। उनका वात्सल्य वर्णन हिन्दी साहित्य की उनुपम निधि है। श्री कृष्ण के बाल-सौंदर्य के साथ-साथ बाल मनोविज्ञान का जैसा चित्रण सूर काव्य में उपलब्ध होता है वैसा अन्यत्र कहीं नही मिलता। शैशवावस्था से लेकर किशोरावस्था तक न जाने कितने चित्र उनके काव्य में प्रस्तुत किए गए है। उनमें केवल बाहरी रूपों और चेष्टाओं का हीं विस्तृत और सूक्ष्म वर्णन नहीं है, कवि ने बालको की अन्तः प्रकृति का भी वर्णन किया है और अनेक भावों की सुन्दर स्वभाविक व्यंजना की हैं। पुरूष होते हुए भी सूरदास के पास माँ का कोमल हृदय था। संसारिक संबधो से दूर रहते हुए भी सूर ने वाल्सल्य का इतना मार्मिक चित्रण किया है कि उसे अनुभवगम्य मानना पड़ता है। सूरदास ने अपने काव्य में श्री कृष्ण की बाल क्रीड़ाओं को मातृ हृदय से निहार कर जैसा मार्मिक, सजीव, मनोमुग्धकारी चित्रण किया है, वैसा वर्णन हिन्दी साहित्य में मिलना असंभव है। अपने मानवीय तथा लौकिक संदर्भो में ही ये लीलाएँ सूर के काव्य की स्थाई निधि हैं और इनकी इस मानवीय तथा लौकिक आकृति के सन्दर्भ में उनके अन्तर्गत निहित तथा व्यंजित सूर काव्य की विशिष्ठता को उभारा जा सकता है। बालक कृष्ण का सरल स्वभाव सूर के हृदय को मातृहृदय की ओर आन्दोलित करता है। उनके मन में यशोदा की तरह हीं सरलता, वात्सलता और आनंद की कोमल अनुभूतियों का बहाव होता है। यह सब कवि की जीवन के प्रति आस्था का प्रमाण है।
Keywords वाल्सल्य, अनुभवगम्य, मनोमुग्धकारी, निष्कपट, मर्मस्पर्शी, हृदयग्राही, मातृहृदय, मनोरम आदि।
Published In Volume 5, Issue 6, November-December 2023
Published On 2023-11-12
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2023.v05i06.8755
Short DOI https://doi.org/gs4xqz

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