International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

A Widely Indexed Open Access Peer Reviewed Multidisciplinary Bi-monthly Scholarly International Journal

Call for Paper Volume 6 Issue 4 July-August 2024 Submit your research before last 3 days of August to publish your research paper in the issue of July-August.

आदिवासी समाज की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थिति पर वैश्वीकरण का प्रभाव : एक आलोचनात्मक अध्ययन

Author(s) Gore Lal Meena
Country India
Abstract आज का दौर वैश्वीकरण का है। आज हर व्यक्ति अपने सपनों को साकार करना चाहता है। वैश्वीकरण के प्रतिरोध में आदिवासी साहित्य की अनुगूंज को भी समझने और जानने की दरकार है। जिसके लिए सबसे पहले हमें आदिवासी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति को बचाना होगा।
वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपांतरण की प्रक्रिया है। इसे एक ऐसी प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है जिसके द्वारा पूरे विश्व के लोग मिलकर एक समाज बनाते हैं तथा एक साथ कार्य करते हैं। यह प्रक्रिया आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और राजनीतिक ताकतों का एक संयोजक है।
प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक नोम चॉमस्की का मानना है कि ‘वैश्वीकरण’ का अर्थ अन्तर्राष्ट्रीय एकीकरण है। इस एकीकरण में भाषा की अहम् भूमिका होगी और जो भाषा व्यापक रूप में प्रयोग में रहेगी, उसी का स्थान विश्व में सुनिश्चित होगा।’
इसमें कोई शक नहीं कि वैश्वीकरण ने शहरी जीवन स्तर में सुधार किया और उसे ऊँचा उठाया है, लेकिन हाल फिलहाल में भूमण्डलीकरण के विरोध में आवाज उठाई जा रही है जो समाज के ऐसे वर्ग से आती है जो तथाकथित जंगली हैं, असभ्य हैं, बर्बर हैं और मूल समाज का हिस्सा नहीं हैं। इनकी आवाज में ऐसी समस्या की पीड़ा है जिसने समाज के शिक्षितों को इनकी आवाज में आवाज मिलने को विवश किया है। सवाल उठता है कि ऐसी क्या वजह है जिसने इस समाज को भूमण्डलीकरण के विरोध में खड़ा किया है जिस वैश्वीकरण से सम्पूर्ण विश्व का लाभ हो रहा है, तरक्की हो रही है, उसके जीवन स्तर में सुधार हो रहा है, आदिवासी समाज उसका विरोध क्यों कर रहा है।
भगवान ग्वाहड़े की पुस्तक ‘‘आदिवासी मोर्चा’’ में कविता ‘‘वैश्वीकरण की असली शक्ल’’ शीर्षक से ज्ञात हो जाता है कि आदिवासी समाज के लिए वैश्वीकरण की छवि नकारात्मक है।
आदिवासी प्रकृति से जुड़े हुए हैं, उनकी आत्मा, उनके पूर्वज पेड़ों में बसते हैं, उनका जीवन, उनकी सम्पूर्ण दिनचर्या प्रकृति के आस-पास उसके साथ है, लेकिन वैश्वीकरण के कारण उनके इलाके के पहाड़ टूट रहे हैं, झरने नालों में परिवर्तित हो रहे हैं।
भगवान ग्वाहड़े लिखते हैं -
‘‘पेड़-पौधे-लता-बेलियों को कुचल कर
तुमने बनाई महामार्ग की
दु्रतगतिमान अमानवीय राहें
जैसे फैलाई हों
दैत्य दानव ने अपनी विकराल बाहें.....’’1
ग्लोबल वार्मिंग वर्तमान समय में एक ऐसा ज्वलन्त विषय है जिसकी चर्चा विश्व भर में की तो जा रही है किन्तु कोई ठोस रास्ता नहीं निकल पा रहा है। इसकी एकमात्र वजह है प्रकृति का अन्धाधुंध दोहन! कोई भी अपनी सुविधाओं से समझौता करने के लिए तैयार नहीं है, किन्तु आदिवासी तटस्थ रूप से केवल पर्यावरण के विषय में ही सोचता है।
Keywords आदिवासी, महिला संस्कृति, वैश्वीकरण, विकास
Published In Volume 4, Issue 1, January-February 2022
Published On 2022-01-20
Cite This आदिवासी समाज की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थिति पर वैश्वीकरण का प्रभाव : एक आलोचनात्मक अध्ययन - Gore Lal Meena - IJFMR Volume 4, Issue 1, January-February 2022.

Share this